।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष कृष्ण षष्ठी, वि.सं.२०७३, रविवार
गीतामें फलसहित विविध उपासनाओंका वर्णन



(गत ब्लॉगसे आगेका)

एक सिपाही था । वह रातके समय कहींसे अपने घर आ रहा था । रास्तेमें उसने चन्द्रमाके प्रकाशमें एक वृक्षके नीचे एक सुन्दर स्त्री देखी । उसने उस स्त्रीसे बातचीत की तो उस स्त्रीने कहा‒मैं आ जाऊँ क्या ? सिपाहीने कहा‒हाँ, आ जा । सिपाहीके ऐसा कहनेपर वह स्त्री जो चुड़ैल थी, उसके पीछे आ गयी । अब वह रोज रातमें उस सिपाहीके पास आती, उसके साथ सोती, उसका संग करती और सबेरे चली जाती । इस तरह वह उस सिपाहीका शोषण करने लगी । एक बार रातमें वे दोनों लेट गये, पर बत्ती जलती रह गयी तो सिपाहीने उससे कहा कि तू बत्ती बन्द कर दे । उसने लेटे-लेटे ही अपना हाथ लम्बा करके बत्ती बन्द कर दी । अब सिपाहीको पता लगा कि यह कोई सामान्य स्त्री नहीं है, यह तो चुड़ैल है ! वह बहुत घबराया । चुड़ैलने उसको धमकी दी कि अगर तू किसीकी मेरे बारेमें बतायेगा तो मैं तेरेको मार डालूँगी । इस तरह वह रोज रातमें आती और सबेरे चली जाती । सिपाहीका शरीर दिन-प्रतिदिन सूखता जा रहा था । लोग उससे पूछते कि भैया ! तुम इतने क्यों सूखते जा रहे हो ? क्या बात है, बताओ तो सही । परन्तु चुड़ैलके डरके मारे वह किसीको कुछ बताता नहीं था । एक दिन वह दूकानसे दवाई लाने गया । दूकानदारने दवाईकी पुड़िया बाँधकर दे दी । सिपाही उस पुड़ियाको जेबमें डालकर घर चला आया । रातके समय जब वह चुड़ैल आयी, तब वह दूरसे ही खड़े-खड़े बोली कि तेरी जेबमें जो पुड़िया है, उसको निकालकर फेंक दे । सिपाहीको विश्वास हो गया कि इस पुड़ियामें जरूर कुछ करामात है, तभी तो आज यह चुड़ैल मेरे पास नहीं आ रही है ! सिपाहीने उससे कहा कि मैं पुड़िया नहीं फेकूँगा । चुड़ैलने बहुत कहा, पर सिपाहीने उसकी बात मानी नहीं । जब चुड़ैलका उसपर वश नहीं चला, तब वह चली गयी । सिपाहीने जेबमेंसे पुड़ियाको निकालकर देखा तो वह गीताका फटा हुआ पन्ना था ! इस तरह गीताका प्रभाव देखकर वह सिपाही हर समय अपनी जेबमें गीता रखने लगा । वह चुड़ैल फिर कभी उसके पास नहीं आयी ।

जो लोग भगवान्‌के मन्दिरमें रहते है; गीता, रामायण, भागवत आदिका पाठ करते हैं; भगवान्‌की आरती, स्तुति, प्रार्थना करते हैं, भगवन्नामका जप करते हैं, पर साथ-ही-साथ लोगोंको ठगते हैं, भगवान्‌की भोग-सामग्री, वस्त्र आदिकी चोरी करते हैं, ठाकुरजीको पैसा कमानेका साधन मानते हैं, ऐसे मनुष्य भी मरनेके बाद भगवदपराधके कारण भूत-प्रेत बन सकते हैं । ये किसीमें प्रविष्ट हो जाते हैं तो उसको दुःख नहीं देते । पूर्वजन्ममें भगवत्पूजा, आरती, स्तुति-प्रार्थना आदि करनेका स्वभाव पड़ा हुआ होनेसे ऐसे भूत-प्रेत भगवन्नामका जप करते हैं, हाथमें गोमुखी रखते हैं, मन्दिरमें जाते हैं, परिक्रमा करते हैं, भगवान्‌की स्तुति, प्रार्थना आदि भी करते हैं । परन्तु किसी मनुष्यमें प्रविष्ट हुए बिना ये भगवान्‌की स्तुति-प्रार्थना नहीं कर सकते । वृन्दावनमें बाँकेबिहारीजीके मन्दिरमें एक छोटा बालक आया करता था । वह संस्कृत जानता ही नहीं था, पर बिहारीजीके सामने खड़े होकर वह संस्कृतमें भगवान्‌के स्तोत्रोंका जोर-जोरसे पाठ किया करता था । पाठ करते समय उसकी आवाज भी बालक-जैसी नहीं रहती थी, प्रत्युत बड़े आदमी-जैसी आवाज सुनायी दिया करती थी । कारण यह था कि उसमें एक प्रेत प्रविष्ट होता था और भगवान्‌की स्तुति करता था, पर वह उस बालकको दुःख नहीं देता था । भगवदपराधका फल भोगनेके बाद भगवत्कृपासे ऐसे भूत-प्रेतोंकी सद्‌गति हो जाती है, प्रेतयोनि छूट जाती है ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे