।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
गीतामें फलसहित विविध उपासनाओंका वर्णन




(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒दुर्घटनामें मरनेवाले एवं आत्महत्या करनेवाले प्रायः भूत-प्रेत क्यों बनते हैं ?

उत्तर‒बीमारीमें तो मेरेको मरना है’‒ऐसी सावधानी, होश रहता है; अतः बीमार व्यक्ति संसारसे उपराम होकर भगवान्‌में लग सकता है । परन्तु दुर्घटनाके समय मनमें कुछ-न-कुछ मनोरथ, चिन्तन रहता है, जिसके रहते हुए मनुष्य अचानक मर जाता है । अगर उस समय मनमें खराब चिन्तन हो, भगवान्‌का  चिन्तन न हो तो वह आदमी भूत-प्रेत बन जाता है । दुर्घटनाके समय मारनेवालेकी तरफ मनोवृत्ति होनेसे उसका चिन्तन होता है, इस कारण भी दुर्घटनामें मरनेवाला भूत-प्रेत बन जाता है । परन्तु जो संसारसे उपराम होकर पारमार्थिक मार्गमें लगा हुआ हो, वह दुर्धटना आदिमें अचानक मर भी जाय, तो भी वह भूत-प्रेत नहीं बनता । तात्पर्य है कि अन्तःकरणमें सांसारिक राग, आसक्ति, कामना, ममता आदि रहनेसे ही मनुष्यकी अधोगति होती है । जिसके अन्तःकरणमें सांसारिक राग आदि नहीं है, उसका शरीर किसी भी देशमें, किसी भी जगह, किसी भी समय छुट जाय तो वह भूत-प्रेत नहीं बनता; क्योंकि भूत-प्रेतयोनिमें ले जानेवाली सामग्री ही उसमें नहीं होती ।

जो क्रोधमें आकर अथवा किसी बातसे दुःखी होकर आत्महत्या कर लेता है, वह दुर्गतिमें चला जाता है अर्थात् भूत-प्रेत-पिशाच बन जाता है । आत्महत्या करनेवाला महापापी होता है । कारण कि यह मनुष्यशरीर भगवत्प्राप्तिके लिये ही मिला है; अतः भगवत्प्राप्ति न करकें अपने ही हाथसे मनुष्यशरीरको खो देना बड़ा भारी पाप है, अपराध है, दुराचार है । दुराचारीकी सद्‌गति कैसे होगी ? अतः मनुष्यको कभी भी आत्महत्या करनेका विचार मनमें नहीं आने देना चाहिये ।

मनुष्यपर कोई बड़ी भारी आफत आ जाय, कोई भयंकर रोग हो जाय, तो वह यही सोचता है कि अगर मैं मर जाऊँ तो सब कष्ट मिट जायँगे । परन्तु वास्तवमें आत्महत्या करनेपर कर्मोंका भोग (कष्ट) समाप्त नहीं होता, उसको तो किसी-न-किसी योनिमें भोगना ही पड़ेगा । आत्महत्या करके वह एक नया पापकर्म करता है, जिसके फलस्वरूप उसको नीच योनिमें जाना पड़ेगा, भूत-प्रेत बनना पड़ेगा और हजारों वर्षोंतक दुःख पाना पड़ेगा ।

प्रश्र‒भूत-प्रेत कहाँ रहते हैं ?

ऊत्तर‒भूत-प्रेत प्रायः श्मशानमें, श्मशानके वृक्षोंमें रहते हैं । वे सरोवरके किनारे रहते हैं । वे सरोवरका पानी नहीं पी सकते, पर जलकी ठण्डी हवा उनको अच्छी लगती है, उससे उनको सुख मिलता है । पीपलके वृक्षका स्वभाव सबको आश्रय देनेका होनेसे उसकी छायामें भी भूत-प्रेत रहते हैं । कोई उनके नामसे छतरी बनवा देता है तो वे उसके भीतर रहते है । कोई मकान कई दिनसे सूना पड़ा हो तो उसमें भी भूत-प्रेत रहने लग जाते हैं ।

प्रश्र‒भूत-प्रेत किसी मनुष्यको पकड़ते हैं तो वे उसके शरीरमें किस द्वारसे प्रवेश करते हैं ?

उत्तर‒भूत-प्रेतोंका शरीर वायुप्रधान होता है; अतः वे मनुष्यशरीरमें किसी भी द्वारसे प्रवेश कर सकते हैं । वे आँख, कान, त्वचा आदि किसी भी इन्द्रियसे शरीरमें प्रविष्ट हो सकते हैं । परन्तु वे प्रायः मलिन द्वारसे अर्थात् मल-मूत्रके स्थानसे अथवा प्राणोंसे ही मनुष्यशरीरमें प्रविष्ट होते हैं ।

प्रश्र‒शरीरमें प्रविष्ट होनेपर भूत-प्रेत कहाँ रहते हैं ?

उत्तर‒शरीरमें प्रविष्ट होकर भूत-प्रेत अहंवृत्तिमें अर्थात् अन्तःकरणमें रहते हैं ।

‘अहम्‌’ दो प्रकारका होता है‒(१) अहंकार और (२) अहंवृत्ति । अहंकार जीवात्मामें रहता है और अहंवृत्ति अन्तःकरणमें रहती है । भूत-प्रेत श्वास आदिके द्वारा मनुष्यके शरीरमें प्रविष्ट होकर अहंवृत्तिमें रहकर इन्द्रियोंके स्थानोंको काममें लेते हैं ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे