।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी, वि.सं.२०७३, बुधवार
गीतामें फलसहित विविध उपासनाओंका वर्णन




(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒क्या शरीरमें एकसे अधिक भूत-प्रेत भी रह सकते हैं ?

उत्तर‒हाँ, रह सकते हैं । किसी-किसी व्यक्तिके शरीरमें एकसे अधिक भूत-प्रेत भी प्रविष्ट हो जाते हैं । जब वे उसके मुखसे बोलते हैं, तब सबकी अलग-अलग आवाज सुनायी पड़ती है ।

प्रश्र‒मनुष्यशरीरमें प्रविष्ट होनेके बाद भूत-प्रेत हरदम उसीमें रहते हैं क्या ?

उत्तर‒भूत-प्रेत उसमें प्रायः आते-जाते रहते हैं । वे उसके पासमें ही घूमते रहते हैं और उनकी वायुके समान तेज गति होनेसे वे दूर भी चले जाते हैं । कुछ ऐसे भूत-प्रेत भी होते हैं, जो हरदम उसीमें रहते हैं ।

भूत-प्रेत हरेकको दुःख देनेमें, हरेक शरीरमें प्रविष्ट होनेमें स्वतन्त्र नहीं होते । वे अपनी मनमानी नहीं कर सकते । वे जिनके शासनमें रहते हैं, उनकी आज्ञाके अनुसार ही वे कार्य करते हैं अर्थात् शासकके आज्ञानुसार ही वे किसीके शरीरमें प्रविष्ट होते हैं, किसीको दुःख देते हैं । अगर शासक आज्ञा न दे तो वे हरेक व्यक्तिमें हरेक समयमें भी प्रविष्ट नहीं हो सकते । जैसे शुभकर्मोंके फलस्वरूप जो स्वर्गादि लोकोंमें जाते हैं, वे अगर मृत्युलोकमें किसीके साथ सम्बन्ध करते हैं तो उन लोकोंके शासकोंकी आज्ञाके अनुसार ही करते हैं । स्वतन्त्ररूपसे वे मृत्युलोकमें किसीके साथ बातचीत भी नहीं कर सकते । इसी तरह भूत-प्रेतयोनिमें भी शासक रहते हैं, जिनकी आज्ञाके अनुसार ही भूत-प्रेत सब कार्य करते हैं ।

जैसे, नरकोंमें प्राणियोंको उबलते हुए तेलमें डाल देते हैं, उनके शरीरके टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं, फिर भी जिन पापकर्मोंके कारण वे नरकोंमें गये हैं, उन कर्मोंके समाप्त होनेतक वे प्राणी मरते नहीं । ऐसे ही मनुष्यका कोई बुरे कर्मोंका भोग आ जाता है तो उनमें भूत-प्रेत प्रविष्ट हो जाते हैं । जबतक कर्मोंका भोग बाकी रहता है, तबतक कितने ही उपाय करनेपर, मन्त्र-यन्त्र आदिका प्रयोग करनेपर भी भूत-प्रेत निकलते नहीं । जब कर्मोंका भोग समाप्त हो जाता है, तब किसी निमित्तसे वे निकल जाते हैं । तात्पर्य यह है कि जिनको प्रारब्धके अनुसार दुःख भोगना है, उन्हींमें प्रविष्ट होकर भूत-प्रेत उनको दुःख देते हैं ।

ऐसा देखा जाता है कि कुटुम्बका कोई व्यक्ति मरकर पितर बन जाता है तो वह जब आता है, तब किसी एक व्यक्तिमें ही आता है, हरेकमें नहीं आता । इससे पता लगता है कि जिसके साथ पुराना ऋणानुबन्ध होता है, उसीमें पितर आते हैं । इसी तरह भूत-प्रेत भी उसीमें आते हैं, जिनके साथ पुराना ऋणानुबन्ध होता है ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे