।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी, वि.सं.२०७३, गुरुवार
एकादशी-व्रत कल है
गीतामें फलसहित विविध उपासनाओंका वर्णन




(गत ब्लॉगसे आगेका)

भूत-प्रेत मनुष्यकी आयु रहते हुए उसको मार नहीं सकते । उसकी आयु समाप्त होनेपर ही वे उसको मार सकते हैं । इस विषयमें हमने एक बात सुनी हैं । लगभग सौ वर्ष पुरानी राजस्थानकी घटना है । कुछ मुसलमान गायोंको कसाईखाने ले जा रहे थे । वहाँके राजाको इसकी खबर मिली तो उसने अपने सिपाहियोंको भेजा । सिपाहियोंने उन मुसलमानोंको मारकर गायें छुड़ा लीं । उनमेंसे एक मुसलमान मरकर जिन्न बन गया और वह राजाके पीछे लग गया । राजाने बहुत उपाय किये, पर उसने छोड़ा नहीं । जिन्न कहता कि मैं एक आदमीकी बलि लेकर ही जाऊँगा । आखिर एक ठाकुरने कहा कि मैं अपनी बलि देनेके लिये तैयार हूँ । जिन्नने राजाको छोड़ दिया और तुरन्त उस ठाकुरको मार दिया । ठाकुरके इच्छानुसार उसके शवको (श्मशान-भूमिमें ले जानेंसे पहले) उसके गुरुके पास ले जाया गया । जब लोग ठाकुरके शवको उसके गुरुके चारों तरफ घुमाकर (परिक्रमा दिलाकर) ले जाने लगे, तब गुरुके पास बैठे एक दूसरे सन्तने कहा कि शव खाली जा रहा है, कुछ देना चाहिये । गुरु बोले कि कुछ कर नहीं सकते, इसकी आयु पूरी हो गयी है । फिर विचार करके दोनों सन्तोंने अपनी आयुमेंसे बारह वर्षकी आयु देकर ठाकुरको जीवित कर दिया । तात्पर्य है कि राजाकी आयु पूरी नहीं हुई थी, इसलिये जिन्न उसको मार नहीं सका । परन्तु ठाकुरकी आयु पूरी हो चुकी थी; अतः जिन्नने उसको मार दिया ।

प्रश्र‒मृगीरोगवाले और प्रेतबाधावाले मनुष्योंके लक्षण प्रायः एक समान दीखते हैं; अतः उन दोंनोंकी अलग-अलग पहचान कैसे हो ?

उत्तर‒मृगीरोगवाले व्यक्तिको तो मूर्च्छा होतो है, पर प्रेतबाधावाले व्यक्तिको प्रायः मूर्च्छा नहीं होती, वह कुछ-न-कुछ बकता रहता है । मृगीरोगवाले व्यक्तिमें तो एक ही जीवात्मा रहती है, पर प्रेतबाधावाले व्यक्तिमें जीवात्माके साथ प्रेतात्मा भी रहती है, जो उस व्यक्तिको कई तरहसे दुःख देती है, तंग करती है । मृगीरोगवाला व्यक्ति तो दवासे ठीक हो जाता है, प्रेतबाधावाला व्यक्ति दवासे ठीक नहीं होता ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे