।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी, वि.सं.२०७३, शनिवार
घोर पापोंसे बचो




(गत ब्लॉगसे आगेका)
संसारी मनुष्य सांसारिक विषयको ही पूरा नहीं जानते, पारमार्थिक विषयको जानना तो दूर रहा ! कारण कि संसारका ज्ञान संसारसे अलग होनेपर ही होता है और परमात्माका ज्ञान परमात्मासे अभिन्न होनेपर ही होता है । अशुद्ध प्रकृतिका ज्ञान अशुद्ध प्र[*]कृतिसे अलग होनेपर ही होता है । अशुद्ध प्रकृतिसे अलग हुए बिना मनुष्य शुद्ध प्रकृतिको आदर दे ही नहीं सकता । दूसरा बड़ा भारी फर्क यह है कि संसारी (अशुद्ध प्रकृतिवाले) लोग पारमार्थिक (शुद्ध प्रकृतिवाले) साधकोंसे वैर करते है[†], परन्तु पारमार्थिक साधक संसारी लोगोंसे वैर करते ही नहीं [‡]

गर्भपात, नसबन्दी आदिके द्वारा कृत्रिम सन्तति-निरोध करना अशुद्ध प्रकृतिवाले मनुष्योंका काम है । अशुद्ध प्रकृति ज्यादा होनेपर फिर मिटनी कठिन होती है । जैसे दुर्व्यसनोंकी ज्यादा आदत पड़ जाये तो उनको छोड़ना बड़ा कठिन होता है, ऐसे ही कृत्रिम उपायोंसे सन्तति-निरोध करनेकी आदत या रीति पड़ जायगी तो उसको हटाना बड़ा कठिन हो जायगा ।[§] यह आदत मनुष्यको ही नष्ट कर देगी, मनुष्यताको तो नष्ट करेगी ही । कारण कि नाशकी तरफ बुद्धि लगेगी तो फिर उधर-ही-उधर चलेगी, नाशकी तरफ ही बुद्धिका विकास होगा, नाश करनेके नये-नये तरीकोंका आविष्कार होगा । इसका परिणाम भयंकर अनर्थकारी होगा ।

देशमें आज भोगेच्छाका ताण्डव नृत्य हो रहा है ! सन्तति-निरोधके पीछे भी भोगेच्छाके सिवाय दूसरा कोई कारण नहीं है । भोगी व्यक्ति ज्यादा होनेसे पुरुषार्थियोंकी कमी हो रही है । पुरुषार्थी व्यक्तियोंकी कमीसे उत्पादन कम और खर्चा अधिक हो रहा है; क्योंकि सांसारिक आवश्यकताएँ भोगियोंको ही ज्यादा होती हैं, त्यागियोंको नहीं । खर्चा अधिक होनेसे देश कर्जदार होता चला जा रहा है ।

   शेष आगेके ब्लॉगमें
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे




[†] मृगमीनसज्जनानां तृणजलसन्तोषविहितवृत्तीनाम् ।
   लुब्धकधीवरपिशुना     निष्कारणवैरिणौ  जगति ॥
                      (नारदपुराण, पूर्व ३७ । ३८; भर्तृहरिनीति ६१)

‘हरिण, मछली और सज्जन क्रमशः तृण, जल और सन्तोषपर अपना जीवन-निर्वाह करते हैं (किसीको दुःख नहीं देते), परन्तु व्याध, मछुए और दुष्टलोग बिना कारण इनसे वैर करते हैं ।’

[‡] उमा जे  राम  चरन  रत  बिगत  काम  मद  क्रोध ।
   निज प्रभुमय देखहि जगत केहि सन करहिं बिरोध ॥
                                              (मानस, उत्तर ११२ ख)

[§] उदाहरणार्थ, तमिलनाडुके उसलियाम पट्टी और उसके आस-पासके गाँवोंमें नवजात कन्याकी हत्या कर देनेकी ऐसी रीति पड़ गयी है कि उसको बन्द करवानेमें ' भारतीय बाल-कल्याण-परिषद् ' एवं वहाँकी सरकारके भी सारे प्रयास विफल हो रहे हैं । सन् ११९३-९४ के बीच वहाँ ४१० नवजात कन्याओंकी हत्या की गयी ! यह बात अनेक समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओंमें प्रकाशित हुई है ।