।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७३, रविवार
घोर पापोंसे बचो




(गत ब्लॉगसे आगेका)
वास्तवमें भारतके लिये परिवार-नियोजनकी आवश्यकता है ही नहीं । कारण कि भारतमें अपार प्राकृतिक सम्पदा है । भारत-भूमिपर सूर्यकी पूर्ण किरणें पड़ती हैं । अतः भारतमें छः ऋतुएँ होती हैं और अनेक प्रकारकी जलवायु मिलती है । ऐसा अन्य किसी देशमें नहीं मिलता । भारतमें जितने प्रकारकी ओषधियों जड़ी-बूटियाँ, वृक्ष, खनिज पदार्थ, अन्न, फल, सब्जियाँ आदि पैदा होती हैं, उतनी अन्य किसी देशमें पैदा नहीं होतीं । जितनी विद्याएँ, कला-कौशल भारतमें मिलते हैं, उतने दूसरे किसी देशमें नहीं मिलते । एक-एक विषयपर जितने ग्रंथ यहाँ पाये जाते हैं, उतने अन्य किसी देशमें नहीं पाये जाते । आविष्कार करनेके लिये भारतके पास बहुत सामग्री है । भारतमें जैसे शूरवीर, सतियाँ, योगी, त्यागी सन्त, सिद्ध पुरुष, ऋषि-मुनि, तपस्वी, राजा, संयमी पुरुष हुए हैं, वैसे अन्य किसी भी देशमें नहीं हुए । अगर सरकार यहाँके वैज्ञानिकों आदिको प्रोत्साहन दे और वे विदेशोंमें न जाकर यहाँ रहकर खोज करें तो भारतमें बहुत विलक्षण आविष्कार हो सकते हैं, जिससे यह देश दुनियाको शिक्षा देनेवाला हो सकता है ।

अगर जनसंख्या अधिक होगी तो पैदावार भी अधिक होगी, जिसका लाभ दूसरे देशोंको भी मिलेगा । प्रत्यक्ष बात है कि पहले जनसंख्या कम थी तो अनाज विदेशोंसे मँगाना पड़ता था । परन्तु अब जनसंख्या बढ़ गयी तो अनाज तथा अन्य कई वस्तुएँ बाहर भेजी जाती हैं । यह बात सरकारसे छिपी नहीं है, पर वह इधर ध्यान नहीं देती । आवश्यकता आविष्कारकी जननी है । जनसंख्या बढ़ती है तो उसके जीवन-निर्वाहके साधन भी बढ़ते हैं, अन्नकी पैदावार भी बढ़ती है, वस्तुओंका उत्पादन भी बढ़ता है, उद्योग भी बढ़ते हैं । परुन्तु आज उलटी बुद्धि हो रही है ! उत्पादनको तो बढ़ाना चाहते हैं, पर उत्पादन करनेवालोंको जन्म लेनेसे रोक रहे हैं । सरकारका कर्तव्य अपने देशमें जन्म लेनेवाले प्रत्येक नागरिकके जीवन-निर्वाहकी व्यवस्था करना है, न कि उसके जन्मपर ही रोक लगा देना । एक आदमीके पास खेती करनेके लिये लगभग आठ सौ बीघा जमीन पड़ी है । उसके दो लड़के हैं, एक बम्बईमें नौकरी करता है और एक माता-पिताके पास रहकर उनकी सेवा करता है । अब उस खेतीको सँभालनेवाला कोई नहीं है । जनसंख्या कम करनेसे यही दशा होनेवाली है !

   शेष आगेके ब्लॉगमें

‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे