।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
कार्तिक शुक्ल सप्तमी, वि.सं.२०७३, सोमवार
बिन्दुमें सिन्धु



(गत ब्लॉगसे आगेका)

आपका भला वास्तवमें भगवान्‌की कृपासे होगा, आपकी चतुराईसे नहीं । अपनी चतुराईसे भला होता हो तो सब अपना भला कर लें । भगवान्‌की कृपा तब होगी, जब आप अपना स्वार्थ और अभिमान छोड़ दोगे, भगवान्‌के शरण हो जाओगे । भगवान्‌की कृपाका भरोसा रखोगे तो जहाँ जाओगे, वहीं आपकी विजय होगी । पाण्डवोंने विजय प्राप्त की तो उसके पीछे भगवान्‌की कृपाका ही बल था । इसलिये आप निमित्तमात्र बन जाओ, रात-दिन भजन-स्मरण करो, पर भरोसा कृपाका ही रखो । एक भगवान्‌को याद रखो तो सब काम सिद्ध हो जायगा, लोक और परलोक सब सिद्ध हो जायगा‒‘एकै साधै सब सधै, सब साधे सब जाय’ । भगवान्‌के भक्त भगवान्‌को याद रखते हैं, फिर वे संसारके सुख और दुःखकी परवाह नहीं करते ।
☀☀☀☀☀

धर्मके लिये, दान-पुण्य करनेके लिये, दूसरोंका हित करनेके लिये भी पैसेकी जरूरत नहीं है । जो धर्मके लिये पैसा चाहता है, वह धर्मके तत्त्वको नहीं जानता । बम्बईमें मेरेसे कहा गया कि गायें भूखों मर रही हैं, अगर आप सत्संगमें कुछ दान-पेटियाँ रखवा दें और धनी आदमियोंको इकट्ठा करके गायोंकी सेवा करनेकी प्रेरणा करें तो बहुत रुपये इकट्ठे हो जायँगे, जिनसे गायोंकी बहुत सेवा होगी । मैंने कहा कि मैं वास्तवमें यहाँ ईश्वर और धर्मका महत्त्व बढ़ाने आया हूँ । अगर मैं ऐसी बात करूँ तो सबके मनमें यह जँचेगी कि पैसा बहुत बढ़िया चीज है, स्वामीजी भी पैसा लानेकी बात कहते हैं ! इनको भी पैसोंकी जरूरत है ! इससे पैसोंका ही महत्त्व बढ़ेगा, जो आपके भीतर पहलेसे ही बढ़ा हुआ है । मैं पैसोंका महत्त्व बढ़ाना नहीं चाहता । कलकत्तेमें भी मुझसे ऐसी बात कही गयी तो मैंने कहा कि कि किसीको पैसोंके लिये कहना, पैसे माँगना उसके कलेजेमें छुरी चलाना है ! ऐसा कसाईपना मेरेसे नहीं होता ! लोग कहते तो हैं कि पैसा हाथकी मैल है, पर यह बात केवल कहनेकी है । वास्तवमें तो पैसा उनके कलेजेकी कोर टुकड़ा है !

आपकी शक्ति हो तो गायोंका पालन करो, गरीबोंकी सेवा करो, पर किसीसे पैसा मत माँगो । पैसोंकी गुलामी मत करो । आपके भाग्यसे जो पैसा आनेवाला है, वह तो आयेगा ही । ब्रह्माजीकी भी ताकत नहीं कि उसे रोक दें !
☀☀☀☀☀


परमात्माको प्राप्त करना सम्भव है, पर शरीरको बनाये रखना असम्भव है । उम्र कम-ज्यादा हो सकती है, पर शरीर सदा बना रहे‒यह सम्भव नहीं है । जो बहुत बड़े चिरंजीवी हैं, उनका भी शरीर सदा बना नहीं रहता । इसलिये शरीरको बनाये रखनेकी धारणा न करके परमात्माको प्राप्त करनेकी धारणा करनी चाहिये । यह मूल, खास बात है ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे