सभी भगवद्भक्त साधकोंको गीता-जयन्तीके
पावन-पर्वपर सहर्ष हार्दिक बधाई हो !
(गत ब्लॉगसे आगेका)
सम्पूर्ण वेदोंका सार उपनिषद् हैं और उपनिषदोंका
सार गीता है । जैसे आमके वृक्षमें
जड़से लेकर पत्तोंतक रस विद्यमान रहता है, पर जो रस उसके फलमें है, वह जड़, टहनी, पत्तों आदिमें नहीं है । ऐसे ही सम्पूर्ण
वेदों, उपनिषदों, शास्त्रोंका सार होनेपर भी जो विलक्षणता गीतामें है, वह वेदों, उपनिषदों, शास्त्रों आदिमें नहीं है । वेद भगवान्के निश्वास हैं‒‘यस्य निःश्वसित
वेदाः’ और गीता भगवान्की वाणी है । निःश्वास तो स्वाभाविक होते हैं, पर गीता भगवान्ने विशेषरूपसे कही है । बड़े-बड़े ऋषि-मुनियोंकी वाणीसे भी भगवान्की
वाणी विलक्षण है; क्योंकि भगवान् ऋषि-मुनियोंके भी आदि हैं‒‘अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः’ (१० । २) । इसलिये सभी दर्शनशास्त्र गीताके अन्तर्गत आ जाते हैं, पर गीता किसी दर्शनशास्त्रके अन्तर्गत नहीं आती । गीता एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है
। यदि गीताके भावोंको समझना हो उसमें केवल कल्याणकी इच्छा
काम आयेगी । कोई गीताको समझना चाहे तो उसे किसी शास्त्र, सम्प्रदाय, योग्यता, बुद्धिमत्ता आदिका आग्रह छोड़कर और केवल भगवान्का आश्रय लेकर
गीताका अध्ययन करना चाहिये ।
भगवान्के द्वारा गीता अर्जुनको निमित्त बनाकर मानवमात्रके कल्याणके
लिये कही गयी है । अतः गीताके अनुसार मानवमात्र अपना कल्याण करनेमें सर्वथा स्वतन्त्र, योग्य, समर्थ और अधिकारी है । इसलिये गीता सम्पूर्ण शास्त्रोंसे विलक्षण
है‒इसमें सन्देहका अवकाश नहीं है ।
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
‒‘सन्त-समागम’ पुस्तकसे
श्रीमद्भगवद्गीताका प्रादुर्भाव
आज बड़ा ही आनन्दका दिवस है,
जिस दिन गीताजी इसरूपसे प्रगट हुई है । वैसे तो गीताजी अनादी
है; ‘इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्....’, ‘एवं
परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः.....’ (गीता
४ । १-२), ऐसे तो अनादिकालसे
यह उपदेश आया है, पर इसरूपसे प्रगट हुआ है आजके दिन । जैसे हम भगवान्का जन्मदिन
मनाते है‒रामनवमी, जन्माष्टमी तो भगवान् उसी दिन प्रगट हुये पर पहले नहीं थे,
ऐसा नहीं है । ऐसे ही आजका दिन गीताजीका
जन्मदिवस, प्रागट्य दिवस है ।
भगवान्ने अर्जुनको निमित्त बनाकर मनुष्यमात्रका
कल्याण करनेके लिये यह अलौकिक उपदेश दिया है । खास करके उनके सामने आनेवाले हम-जैसे
कलियुगी जीव थे ।
इस छोटे-से ग्रन्थमें भगवान्ने अपने हृदयके बहुत
ही विलक्षण भाव भर दिये हैं, जिनका आजतक कोई पार नहीं पा सका और न पा ही सकता
है ।
जय भगवद्गीते......जय भगवद्गीते.....
हरि-हिय कमल विहारिणि...सुन्दर सुपुनीते....
जय भगवद्गीते........
|