।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी, वि.सं.२०७३, शनिवार
मोक्षदा एकादशी-व्रत (सबका), श्रीगीता-जयन्ती
गीताकी विलक्षणता


सभी भगवद्भक्त साधकोंको गीता-जयन्तीके पावन-पर्वपर सहर्ष हार्दिक बधाई हो !

(गत ब्लॉगसे आगेका)

सम्पूर्ण वेदोंका सार उपनिषद् हैं और उपनिषदोंका सार गीता है । जैसे आमके वृक्षमें जड़से लेकर पत्तोंतक रस विद्यमान रहता है, पर जो रस उसके फलमें है, वह जड़, टहनी, पत्तों आदिमें नहीं है । ऐसे ही सम्पूर्ण वेदों, उपनिषदों, शास्त्रोंका सार होनेपर भी जो विलक्षणता गीतामें है, वह वेदों, उपनिषदों, शास्त्रों आदिमें नहीं है । वेद भगवान्‌के निश्वास हैं‒‘यस्य निःश्वसित वेदाः’ और गीता भगवान्‌की वाणी है । निःश्वास तो स्वाभाविक होते हैं, पर गीता भगवान्‌ने विशेषरूपसे कही है । बड़े-बड़े ऋषि-मुनियोंकी वाणीसे भी भगवान्‌की वाणी विलक्षण है; क्योंकि भगवान् ऋषि-मुनियोंके भी आदि हैं‒‘अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः’ (१० । २) । इसलिये सभी दर्शनशास्त्र गीताके अन्तर्गत आ जाते हैं, पर गीता किसी दर्शनशास्त्रके अन्तर्गत नहीं आती । गीता एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है । यदि गीताके भावोंको समझना हो उसमें केवल कल्याणकी इच्छा काम आयेगी । कोई गीताको समझना चाहे तो उसे किसी शास्त्र, सम्प्रदाय, योग्यता, बुद्धिमत्ता आदिका आग्रह छोड़कर और केवल भगवान्‌का आश्रय लेकर गीताका अध्ययन करना चाहिये ।

भगवान्‌के द्वारा गीता अर्जुनको निमित्त बनाकर मानवमात्रके कल्याणके लिये कही गयी है । अतः गीताके अनुसार मानवमात्र अपना कल्याण करनेमें सर्वथा स्वतन्त्र, योग्य, समर्थ और अधिकारी है । इसलिये गीता सम्पूर्ण शास्त्रोंसे विलक्षण है‒इसमें सन्देहका अवकाश नहीं है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘सन्त-समागम’ पुस्तकसे

श्रीमद्भगवद्गीताका प्रादुर्भाव

आज बड़ा ही आनन्दका दिवस है, जिस दिन गीताजी इसरूपसे प्रगट हुई है । वैसे तो गीताजी अनादी है; ‘इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्....’, ‘एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः.....’ (गीता ४ । १-२), ऐसे तो अनादिकालसे यह उपदेश आया है, पर इसरूपसे प्रगट हुआ है आजके दिन । जैसे हम भगवान्‌का जन्मदिन मनाते है‒रामनवमी, जन्माष्टमी तो भगवान् उसी दिन प्रगट हुये पर पहले नहीं थे, ऐसा नहीं है । ऐसे ही आजका दिन गीताजीका जन्मदिवस, प्रागट्य दिवस है ।

भगवान्‌ने अर्जुनको निमित्त बनाकर मनुष्यमात्रका कल्याण करनेके लिये यह अलौकिक उपदेश दिया है । खास करके उनके सामने आनेवाले हम-जैसे कलियुगी जीव थे ।

इस छोटे-से ग्रन्थमें भगवान्‌ने अपने हृदयके बहुत ही विलक्षण भाव भर दिये हैं, जिनका आजतक कोई पार नहीं पा सका और न पा ही सकता है ।

जय भगवद्गीते......जय भगवद्गीते.....
हरि-हिय कमल विहारिणि...सुन्दर सुपुनीते....
जय भगवद्गीते........