।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी, वि.सं.२०७३, रविवार
लड़ाई-झगड़ेका समाधान



प्रश्न‒परिवारमें झगड़ा, कलह, अशान्ति आदि होनेका क्या कारण है ?

उत्तर‒हरेक प्राणी अपने मनकी कराना चाहता है, अपनी अनुकूलता चाहता है, अपना सुख-आराम चाहता है, अपनी महिमा चाहता है, अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहता है‒ऐसे व्यक्तिगत स्वार्थके कारण ही परिवारमें झगडा, कलह, अशान्ति आदि होते हैं । जैसे, कुत्ते आपसमें बड़े प्रेमसे खेलते हैं, पर रोटीका टुकड़ा सामने आते ही लड़ाई शुरू हो जाती है; अतः लड़ाईका कारण रोटीका टुकड़ा नहीं है, प्रत्युत व्यक्तिगत स्वार्थ है ।

कुटुम्बमें जो केवल अपना सुख-आराम चाहता है, वह कुटुम्बी नहीं होता, प्रत्युत एक व्यक्ति होता है । कुटुम्बी वही होता है, जो कुटुम्बमें बड़े, छोटे और समान अवस्थावाले‒सबका हित चाहता है और हित करता है । अतः जो कुटुम्बमें शान्ति चाहता है, कलह नहीं चाहता, उसको अपना कर्तव्य और दूसरोंका अधिकार देखना चाहिये अर्थात् अपने कर्तव्यका पालन करना चाहिये और दूसरोंका हित करना चाहिये, आदर-सत्कार, सुख-आराम देना चाहिये ।

प्रश्न‒भाई-भाई आपसमें लड़ें तो माता-पिताको क्या करना चाहिये ?

उत्तर‒माता-पिताको न्यायकी बात कहनी चाहिये । वे छोटे पुत्रसे कहें कि तुम भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्नको देखो कि वे रामजीके साथ कैसा बर्ताव करते थे; भीम, अर्जुन आदि अपने बड़े भाई युधिष्ठिरके साथ कैसा बर्ताव करते थे । बड़े पुत्रसे कहें कि तुम रामजीको देखो कि उन्होंने अपने छोटे भाइयोंके साथ कैसा बर्ताव किया था[*], और युधिष्ठिर अपने छोटे भाइयोंके साथ कैसा बर्ताव करते थे । अतः तुम सबलोग उनके चरित्रोंको आदर्श मानकर अपने आचरणमें लाओ ।

प्रश्न‒बहन-भाई आपसमें लड़ें तो माता-पिताको क्या करना चाहिये ?

उत्तर‒माता-पिताको लड़कीका पक्ष लेना चाहिये; क्योंकि वह सुवासिनी है, दानकी पात्र है[†], थोड़े दिन रहनेवाली है; अतः वह आदरणीय है । लड़का तो घरका मालिक है, घरमें ही रहनेवाला है । लड़केको एकान्तमें समझाना चाहिये कि बेटा ! बहनका निरादर मत करो । यह यहाँ रहनेवाली नहीं है । यह तो अपने घर चली जायगी । तुम तो यहाँके मालिक हो ।’

बहनको चाहिये कि वह भाईसे कुछ भी आशा न रखे । भाई जितना दे, उसमेंसे थोड़ा ही ले । उसको यह सोचना चाहिये कि भाईके घरसे लेनेसे हमारा काम थोड़े ही चलेगा ! हमारा काम तो हमारे घरसे ही चलेगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे


[*] इसके लिये गीताप्रेससे प्रकाशित तत्त्वचिन्तामणि’ के दूसरे भागमें रामायणमें आदर्श भ्रातृप्रेम’ नामक लेखको मननपूर्वक पढ़ना चाहिये ।

[†] बहन, बेटी और भानजीको भोजन कराना ब्राह्मणको भोजन करानेके समान पुण्य माना गया है ।