।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष कृष्ण प्रतिपदा, वि.सं.२०७३, बुधवार
लड़ाई-झगड़ेका समाधान


  (गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒जेठानी और देवरानी आपसमें लड़ें तो भाइयोंको क्या करना चाहिये ?

उत्तर‒वे अपनी-अपनी स्त्रीको समझायें । छोटा भाई अपनी स्त्रीको समझाये कि देखो ! तुम्हें मेरे बड़े भाईको पिताके समान और भौजाईको माँके समान समझकर उनका आदर करना चाहिये । बड़ा भाई अपनी स्त्रीको समझाये कि ‘तुम्हारे लिये मेरा छोटा भाई पुत्रके समान और उसकी स्त्री पुत्रीके समान है; अतः तुम्हें उनको प्यार करना चाहिये । उसकी स्त्री कुछ भी कह दे, तुम्हें उसको क्षमा कर देना चाहिये; क्योंकि तुम बड़ी हो । अगर तुम उसकी बात नहीं सहोगी तो तुम्हारा दर्जा बड़ा कैसे हुआ ? उसकी बातोंको सहनेसे, उसको प्यार करनेसे ही तो दर्जा ऊँचा होगा ! क्रोध करनेवाला अन्तमें हार जाता है और दूसरेके क्रोधको धैर्यपूर्वक सहनेवाला जीत जाता है ।

दोनों भाइयोंको यह सावधानी रखनी चाहिये कि वे स्त्रियोंकी कलहको अपनेमें न लायें । स्त्रियोंमें सहनेकी शक्ति (स्वभाव) कम होती है; अतः भाइयोंको बड़ी सावधानीसे बर्ताव करना चाहिये, जिससे आपसमें खटपट न हो । अगर स्त्रियोंकी आपसमें बने ही नहीं तो अलग-अलग हो जाना चाहिये[*], पर अलग-अलग भी प्रेमके लिये ही होना चाहिये । यदि अलग-अलग होकर भी आपसमें खटपट रहती है तो फिर अलग-अलग होनेसे क्या हुआ ? अतः प्रेमके लिये ही साथ रहना है और प्रेमके लिये ही अलग होना है । अलग होनेपर अपने हिस्सेके लिये कलह भी नहीं होनी चाहिये । छोटे भाईको चाहिये कि बड़ा भाई जितना दे दे, उतना ही ले ले, पर बड़े भाईको चाहिये कि वह अपनी दृष्टिसे छोटे भाईको अधिक दे; क्योंकि वह छोटा है, प्यारका पात्र है । अपनी दृष्टिसे अधिक देनेपर भी यदि छोटा भाई (अपनी दृष्टिसे) ठीक न माने तो बड़े भाईको छोटे भाईकी दृष्टिका ही आदर करना चाहिये, अपनी दृष्टिका नहीं ।

त्याग ही बड़ी चीज है । तुच्छ चीजोंके लिये राग-द्वेष करना बड़ी भारी भूल है; क्योंकि चीजें तो यहीं रह जायँगी, पर राग-द्वेष साथमें जायँगे । इसलिये मनुष्यको हरदम सावधान रहना चाहिये और अपने अन्तःकरणको कभी मैला नहीं करना चाहिये ।

प्रश्न‒पुत्र आपसमें लड़ें तो भाइयोंको क्या करना चाहिये ?

उत्तर‒जहाँतक बने, अपने पुत्रका पक्ष न लें, भाईके पुत्रका पक्ष लें । यदि भाईके पुत्रका अन्याय हो तो उसको शान्तिसे समझाना चाहिये । तात्पर्य है कि अपने स्वार्थ और अभिमानका त्याग करें तो सबके साथ अच्छा बर्ताव होगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे


[*] रोजानारी राड़ आपसकी आछी नहीं, बने जहाँतक बाड़ चटपट कीजै चाकरिया ।