(गत ब्लॉगसे आगेका)
पुत्रवधूको समझाना
चाहिये कि ‘देख बेटी ! सास
जो करती है बहूके हितके लिये ही करती है । पुत्र जन्मता है तभीसे वह आशा रखती है कि
मेरी बहू आयेगी,
मेरा कहना करेगी, मेरी सेवा करेगी
! ऐसी आशा रखनेवाली सास बहूका अहित कैसे कर सकती है ? बचपना होनेके
कारण, अपने मनके अनुकूल
न होनेसे तेरेको सासकी बात बुरी लगती है । बेटी ! तू अपने माँ-बाप आदि सबको छोड़कर यहाँ
आयी है तो क्या एक सासको भी राजी नहीं रख सकती ! सास कितने दिनकी है ? यहाँकी मालकिन
तो तुम ही हो । तुम दोनोंकी लड़ाई भले आदमी सुनेंगे तो इसमें दोष (गलती) तुम्हारा ही
मानेंगे; जैसे‒बड़े-बूढ़े
और बालक आपसमें लड़े तो दोष बच्चोंका ही माना जाता है, बड़े-बूढ़ोंका नहीं
। अतः इन सब बातोंको खयालमें रखते हुए तुम्हें अपने व्यवहारका सुधार करना चाहिये, जिससे तुम्हारा
व्यवहार सासको बुरा न लगे । कभी तुमसे कटु बर्ताव हो भी जाय तो सासके पैरोंमें पड़कर, रोकर क्षमा माँग
लेनी चाहिये । इसका सासपर बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ेगा, जिससे तुम दोनोंकी तथा घरकी शोभा
होगी, घर सुखी होगा
। एक तुम्हारे बिगड़नेसे पूरा घर अशान्त हो जायगा । घरकी अशान्तिका कारण तुम क्यों बनती
हो ? तुम बडोंकी आज्ञाका
पालन करो; सुबह-शाम बड़ोंके
चरणोंमें पड़ो । सास कुछ भी कह दे, उसके सामने बोलो मत । जब वह शान्त
हो जाय, तब अपने मनकी
बात बड़ी शान्तिसे उसको बता दो । वह माने तो ठीक, न माने तो ठीक, तुम्हारा कोई
दोष नहीं रहेगा ।’
प्रश्न‒पिता और माता आपसमें लड़ें तो पुत्रका क्या कर्तव्य है ?
उत्तर‒जहाँतक बने, पुत्रको माँका
पक्ष लेना चाहिये; परन्तु पिताको इस बातका पता नहीं लगना चाहिये कि यह अपनी
माँका पक्ष लेता है । पितासे कहना चाहिये कि ‘पिताजी ! आप हम सबके मालिक हैं
। मेरी माँ कुछ भी कहेगी तो आपसे ही कहेगी । आपके सिवाय उसकी सुननेवाला कौन है ? विवाहके समय आपने
अग्नि और ब्राह्मणके सामने जो वचन दिये थे, उसका पालन करना चाहिये । माँ
अपने दिये हुए वचन निभाती है या नहीं, इसका खयाल न करके आपको अपना ही
कर्तव्य निभाना चाहिये । आप मर्यादा रखेंगे तो मेरे और मेरी माँके लोक-परलोक दोनों
सुधर जायँगे,
नहीं तो हम दोनों
कहाँ जायेंगे ?
आपके बिना हमारी
क्या दशा होगी ?
मैं आपको शिक्षा
नहीं दे रहा हूँ, केवल याद दिला रहा हूँ । मैं कुछ अनुचित भी कह दूँ तो
आपको क्षमा कर देना चाहिये; क्योंकि आप बड़े हैं‒‘क्षमा
बड़नको चाहिये, छोटनको उत्पात
। कहा विष्णुको धट गयो, जो भृगु मारी
लात ॥’ भृगुने लात मारी
तो विष्णुभगवान्का घटा कुछ नहीं, प्रत्युत महिमा ही बड़ी ! अतः
आप खुद सोचें । आपको मैं क्या समझाऊँ, आप खुद जानकार हैं ।’
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’
पुस्तकसे
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