।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष कृष्ण तृतीया, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
लड़ाई-झगड़ेका समाधान


  (गत ब्लॉगसे आगेका)

पुत्रवधूको समझाना चाहिये कि देख बेटी ! सास जो करती है बहूके हितके लिये ही करती है । पुत्र जन्मता है तभीसे वह आशा रखती है कि मेरी बहू आयेगी, मेरा कहना करेगी, मेरी सेवा करेगी ! ऐसी आशा रखनेवाली सास बहूका अहित कैसे कर सकती है ? बचपना होनेके कारण, अपने मनके अनुकूल न होनेसे तेरेको सासकी बात बुरी लगती है । बेटी ! तू अपने माँ-बाप आदि सबको छोड़कर यहाँ आयी है तो क्या एक सासको भी राजी नहीं रख सकती ! सास कितने दिनकी है ? यहाँकी मालकिन तो तुम ही हो । तुम दोनोंकी लड़ाई भले आदमी सुनेंगे तो इसमें दोष (गलती) तुम्हारा ही मानेंगे; जैसे‒बड़े-बूढ़े और बालक आपसमें लड़े तो दोष बच्चोंका ही माना जाता है, बड़े-बूढ़ोंका नहीं । अतः इन सब बातोंको खयालमें रखते हुए तुम्हें अपने व्यवहारका सुधार करना चाहिये, जिससे तुम्हारा व्यवहार सासको बुरा न लगे । कभी तुमसे कटु बर्ताव हो भी जाय तो सासके पैरोंमें पड़कर, रोकर क्षमा माँग लेनी चाहिये । इसका सासपर बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ेगा, जिससे तुम दोनोंकी तथा घरकी शोभा होगी, घर सुखी होगा । एक तुम्हारे बिगड़नेसे पूरा घर अशान्त हो जायगा । घरकी अशान्तिका कारण तुम क्यों बनती हो ? तुम बडोंकी आज्ञाका पालन करो; सुबह-शाम बड़ोंके चरणोंमें पड़ो । सास कुछ भी कह दे, उसके सामने बोलो मत । जब वह शान्त हो जाय, तब अपने मनकी बात बड़ी शान्तिसे उसको बता दो । वह माने तो ठीक, न माने तो ठीक, तुम्हारा कोई दोष नहीं रहेगा ।’

प्रश्न‒पिता और माता आपसमें लड़ें तो पुत्रका क्या कर्तव्य है ?

उत्तर‒जहाँतक बने, पुत्रको माँका पक्ष लेना चाहिये; परन्तु पिताको इस बातका पता नहीं लगना चाहिये कि यह अपनी माँका पक्ष लेता है । पितासे कहना चाहिये कि पिताजी ! आप हम सबके मालिक हैं । मेरी माँ कुछ भी कहेगी तो आपसे ही कहेगी । आपके सिवाय उसकी सुननेवाला कौन है ? विवाहके समय आपने अग्नि और ब्राह्मणके सामने जो वचन दिये थे, उसका पालन करना चाहिये । माँ अपने दिये हुए वचन निभाती है या नहीं, इसका खयाल न करके आपको अपना ही कर्तव्य निभाना चाहिये । आप मर्यादा रखेंगे तो मेरे और मेरी माँके लोक-परलोक दोनों सुधर जायँगे, नहीं तो हम दोनों कहाँ जायेंगे ? आपके बिना हमारी क्या दशा होगी ? मैं आपको शिक्षा नहीं दे रहा हूँ, केवल याद दिला रहा हूँ । मैं कुछ अनुचित भी कह दूँ तो आपको क्षमा कर देना चाहिये; क्योंकि आप बड़े हैं‒क्षमा बड़नको चाहिये, छोटनको उत्पात । कहा विष्णुको धट गयो, जो भृगु मारी लात ॥’ भृगुने लात मारी तो विष्णुभगवान्‌का घटा कुछ नहीं, प्रत्युत महिमा ही बड़ी ! अतः आप खुद सोचें । आपको मैं क्या समझाऊँ, आप खुद जानकार हैं ।’

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे