(गत ब्लॉगसे आगेका)
परिवारमें
कलह न हो‒इसके लिये प्रत्येक व्यक्तिका कर्तव्य है कि वह अपने अधिकारका त्याग करके
दूसरोंके अधिकारकी रक्षा करे । प्रत्येक व्यक्ति अपना आदर और सम्मान चाहता है; अतः
दूसरोंको आदर और सम्मान देना चाहिये ।
प्रश्न‒सास पुत्रका पक्ष लेकर तंग करे तो बहूको क्या करना चाहिये ?
उत्तर‒बहूको यही समझना
चाहिये कि ये तो घरके मालिक हैं । मैं तो दूसरे घरसे आयी हूँ । अतः ये कुछ भी कहें, कुछ भी करें मुझे
तो वही करना है,
जिससे ये राजी
रहें । बहूको सासके साथ अच्छा बर्ताव करना चाहिये, उससे द्वेष नहीं करना चाहिये
। उसको अपने भावोंकी रक्षा करनी चाहिये, अपने भावोंको अशुद्ध नहीं होने
देना चाहिये । उसको भगवान्से प्रार्थना करनी चाहिये कि ‘हे
नाथ ! इनको सद्बुद्धि दो और मेरेको सहिष्णुता दो ।’
प्रश्न‒पति और ससुर आपसमें लड़े तो स्त्रीको क्या करना चाहिये ?
उत्तर‒स्त्रीका कर्तव्य
है कि वह अपने पतिको समझाये; जैसे‒‘यहाँ जो कुछ है, वह सब पिताजीका
ही है । आपकी माँको भी पिताजी ही लाये हैं । धन-सम्पत्ति, जमीन-जायदाद, घर, वैभव आदि सब पिताजीका
ही कमाया हुआ है । अतः उनका सब तरहसे आदर करना चाहिये । उनकी बात मानना न्याय है, धर्म
है और आपका कर्तव्य है । कुछ भी लिखा-पढ़ी किये बिना आप उनकी सम्पत्तिके स्वतःसिद्ध
उत्तराधिकारी हैं । अतः वे कुछ भी कहें, वह सब आपको मान्य होना चाहिये
। आपको शरीर, मन, वाणी आदिसे सर्वथा
उनका आदर करना चाहिये । वे कभी गुस्सेमें आकर कुछ कह भी दें तो आपको यही सोचना चाहिये
कि उनके समान मेरा हित करनेवाला दूसरा कोई नहीं है । अतः उनका चित्त कभी नहीं दुखाना
चाहिये । मैं भी कुछ अनुचित कह दूँ तो आपको मेरी परवाह न करके पिताजीकी बातका ही आदर
करना चाहिये ।’
प्रश्न‒पति और पुत्र आपसमें लड़ें तो स्त्रीको क्या करना चाहिये ?
उत्तर‒स्त्रीको तो पतिका
ही पक्ष लेना चाहिये और पुत्रको समझाना चाहिये कि ‘बेटा ! तुम्हारे पिताजी जो कुछ
कहें, जो कुछ करें, पर वास्तवमें
उनके हृदयमें स्वतः तुम्हारे प्रति हितका भाव है । वे कभी तुम्हारा अहित नहीं कर सकते
और दूसरा कोई तुम्हारा अहित करे तो वे सह नहीं सकते । अतः इन भावोंका खयाल रखकर तुम्हें
पिताजीकी सेवामें ही तत्पर रहना चाहिये । तुम मेरा आदर भले ही कम करो, पर पिताजीका आदर
ज्यादा करो । वास्तवमें हमारे मालिक तो ये ही हैं । मेरा आदर तुम कम भी करोगे तो मैं
नाराज नहीं होऊँगी, पर तुम्हारे पिताजी नाराज नहीं होने चाहिये । मैं भी उनको
प्रसन्न रखना चाहती हूँ और तुम्हारा भी कर्तव्य है कि उनको प्रसन्न रखो ।’
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’
पुस्तकसे
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