।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष कृष्ण षष्ठी, वि.सं.२०७३, सोमवार
बिन्दुमें सिन्धु


           श्रोता‒मूक सत्संग क्या है ?

स्वामीजी‒न शरीरकी क्रिया हो, न वाणीकी क्रिया हो, न मनकी क्रिया हो, सब मूक (चुप) हो जायँ । कोई भी क्रिया न करके एक भगवान्‌के चरणोंके शरण हो जाय । शरण होना है‒यह भाव भी न रहे । यह चुप साधन’ है । शरणानन्दजी महाराज इसको मूक सत्संग’ और सेठजी अचिन्त्य-ध्यान’ कहते थे ।
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भगवान्‌के चरणोंके शरण हो जाना सबसे श्रेष्ठ साधन है । शरणागतिसे बहुत विलक्षणता आती है, इसका हमें शरणानन्दजी महाराजके रूपमें बड़ा प्रबल प्रमाण मिला है । शरणानन्दजी महाराजने अपनी पुस्तकोंमें जो बातें लिखी हैं, वह नया आविष्कार है । भगवान्‌के शरण होनेसे वे शरणानन्द’ थे । बहुत सुगमतासे परमात्माकी प्राप्ति हो जाय, ऐसा उनका नया आविष्कार है । छहों शास्त्रोंसे उनकी बात नयी है । उनकी वाणी देखनेसे मालूम होता है कि शरणागति बहुत विलक्षण, अलौकिक चीज है ।

जैसे आपकी कन्याका विवाह हो जाता है तो वह ससुरालकी हो जाती है, उसका गोत्र बदल जाता है, ऐसे ही जो सर्वथा भगवान्‌के शरण हो जाता है, उसका सब कुछ बदल जाता है । वह संसारी आदमी नहीं रहता । वह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र नहीं रहता । वह संसारसे ऊँचा उठ जाता है । उसकी वाणी विलक्षण हो जाती है । उसका जीवन विलक्षण हो जाता है । एक भगवान्‌के शरण होते ही उसका और भगवान्‌का एक रूप हो जाता है । इसलिये हे नाथ ! मैं आपका हूँ’इस प्रकार शरण होकर निश्चिन्त हो जाय । इसमें किसी गवाहकी जरूरत नहीं है । हे नाथ ! मैं आपका हूँ’इतना कह देनेमात्रका बड़ा माहात्म्य है, अगर भीतरसे हो जाय तो पूर्ण हो जायगा !

हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’यह प्रार्थना हरेक भाई-बहनके लिये बड़े कामकी है । आप हरदम यह प्रार्थना करके देखो तो सही, विचित्रता आ जायगी ! बीचमें अपनी बुद्धि मत लगाओ । भगवान्‌को भूलें नहीं, फिर सब काम ठीक हो जायगा । स्वयं पहलेसे ही परमात्माका अंश है और वह उसीके शरण हो जाय तो फिर बाकी क्या रहेगा ?

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे