।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
वास्तविक बड़प्पन


(गत ब्लॉगसे आगेका)

ईस्वर  अंस  जीव  अबिनासी ।
चेतन अमल सहज सुख रासी ॥
                                (मानस, उत्तर ११७ । २)

सहज सुखराशि होते हुए भी स्वयं दुःखी कब होता है ? जब यह नाशवान्‌की पराधीनता स्वीकार कर लेता है, तब यह दुःखी हो जाता है, नहीं तो यह दुःखी हो नहीं सकता । आप दुःखको तो चाहते नहीं पर दुःखकी सामग्री बटोरते हैं । दुःखी होना चाहते नहीं पर नाशवान् चीजोंकी पराधीनता स्वीकार करते हैं । पराधीनतामें सुख है ही नहीं, स्वप्नमें भी नहीं है ।

श्रोता‒जिसमें गुण होते हैं, उसके पास आदमी ज्यादा जाते हैं ।

स्वामीजी‒गुण होनेसे उसके पास ज्यादा आदमी जाते हैं, तो गुण कौन-सा उसका स्वरूप है ? गुण भी उसने लिया है । गुण नहीं रहेगा तो लोग उसके पास नहीं जायँगे । आप विचार करें कि दूसरोंके जानेसे वह बड़ा कैसे हो गया ? अगर लोगोंके जानेसे वह बड़ा हुआ, तो उसका बड़प्पन पराधीन ही तो हुआ । लोग जायँ तो बड़ा हो गया और लोग न जायँ तो छोटा हो गया‒यह तो पराधीनता हुई, बड़प्पन कैसे हुआ ?

हम किसी गुणके कारण अपनेको बड़ा मानते हैं, विद्याके कारण अपनेको बड़ा मानते हैं, पदके कारण अपनेको बड़ा मानते हैं, लोगोंके द्वारा आदर-सत्कार होनेपर अपनेको बड़ा मानते हैं तो यह सब-की-सब पराधीनता है । कोई आये चाहे न आये, गुण हो चाहे न हो, लोग अच्छा मानें चाहे बुरा मानें, उनसे हमें क्या मतलब है ? हम तो जैसे हैं, वैसे ही रहेंगे । आप हमें बड़ा मान लें तो क्या हम बड़े हो जायँगे ? आप छोटा मान लें तो क्या हम छोटे हो जायँगे ? जो दूसरोंके द्वारा अपनेकी बड़ा या छोटा मानता है, वह कभी बड़ा हो सकता है क्या ? स्वप्नमें भी नहीं हो सकता । जो दूसरी वस्तुओंके अधीन अपना बड़प्पन मानता है, वह सुखी कैसे हो सकता है ? उसने तो महान् गुलामी पकड़ ली । रुपये इकट्ठे कर लिये, कागज इकट्ठे कर लिये, हीरे-पन्ने इकट्ठे कर लिये, पत्थरोंके टुकड़े इकट्ठे कर लिये और मान लिया कि हम बड़े हो गये । तुम बड़े कैसे हो गये ? आपके पास धन आ गया है तो उसका सदुपयोग करें, उसे अच्छे-से-अच्छे काममें लगायें । उसके आनेसे आप बड़े हो गये तो आपकी तो बेइज्जती ही हुई ।

भगवान् आने-जानेवाले नहीं हैं, वे रहनेवाले हैं । उन्हें आप अपना मानेंगे तो आप असली बड़े हो जायँगे, आपमें बड़प्पनका अभिमान नहीं आयेगा और छोटेपनका भय नहीं रहेगा कि कोई हमें छोटा न मान ले । आपको कोई छोटा मान ले तो क्या हानि हो जायगी ? आप जिसके हैं और जो आपका है, उस परमात्माके साथ आप अपना सम्बन्ध ठीक स्वीकार कर लें तो आप वास्तवमें बड़े हो जायँगे । फिर आपमें बड़े-छोटे होनेका अभिमान और दीनता नहीं रहेगी, परंतु दूसरी वस्तुओंके द्वारा अपनेको बड़ा-छोटा मानेंगे तो अभिमान और दीनता कभी जायगी नहीं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सन्त-समागम’ पुस्तकसे