(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒आप अपनी फोटो क्यों नहीं खिचवाते हमलोग फिर आपको याद कैसे करेंगे ?
स्वामीजी‒हमें नहीं, भगवान्को याद करो । फोटो खिंचवाना इसलिये बन्द किया कि लोग
हमें याद करेंगे । हमें याद करनेसे फायदा नहीं है । फायदा भगवान्को याद करनेसे है
। जो अपनी फोटो खिंचवाता है, वह
भगवद्द्रोही है । भगवान्के चिन्तनमें बाधा लगा देना ठीक है क्या ?
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श्रोता‒स्त्री विधवा हो जाय तो उसका पुनः विवाह करना उचित है या नहीं ?
स्वामीजी‒नहीं करना चाहिये । शास्त्रकी आज्ञा नहीं है । विचार
करें कि विवाह संज्ञा कब होती है, विवाह किसको कहते हैं ?
जिसमें कन्यादान होता है । पिताने कन्यादान कर दिया और लेनेवाला
मर गया, अब कन्यादान कौन करेगा ?
और कन्यादानके बिना विवाह कैसे होगा ?
उसकी विवाह संज्ञा होती ही नहीं ! वह विवाह नहीं,
व्यभिचार है । पहले ‘वेन’ नामका एक अधर्मी, दुष्ट राजा हुआ था,
उसने विधवा-विवाह शुरू किया । उसकी बातको ब्राह्मणों,
क्षत्रियों और वैश्योंने स्वीकार नहीं किया । शूद्रोंमें किसी-किसीने
स्वीकार किया । अभी कलियुग है, इसलिये अधर्मका खूब प्रचार हो रहा है । लोगोंकी बुद्धि उल्टी
हो रही है । वे वही काम करेंगे, जो शास्त्रविरुद्ध हो‒
बरन धर्म नहिं आश्रम चारी ।
श्रुति बिरोध रत सब नर नारी ॥
(मानस, उत्तर॰ ९८ । १)
मनुष्यके कल्याणके लिये हिन्दू संस्कृतिमें ऋषि-मुनियोंने
जितना उद्योग किया है, उतना किसीने नहीं किया है ।
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श्रोता‒भगवान्की पूजा और नामजप करते समय मन स्थिर नहीं रहता,
इसके लिये क्या करना चाहिये ?
स्वामीजी‒नामजप करना मत छोड़ो । किसी भी तरहसे भगवान्का नाम आ जाय,
बढ़िया है । मन लग जाय तो बहुत ही बढ़िया है । भगवान्की कृपापर
विश्वास रखो । उनकी कृपासे मन लगेगा । भगवान्से प्रार्थना करो कि ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’
।
सबसे उत्तम चीज है‒भगवान्में प्रेम । इस प्रेमको पानेका तरीका
एक ही है, और वह है‒भगवान्में अपनापन । बड़े-बड़े
अनुष्ठानसे, त्यागसे, तपस्यासे
प्रेम प्राप्त नहीं होता । प्रेम केवल भगवान्में अपनापन होनेसे ही प्राप्त होता है
कि ‘भगवान् मेरे हैं’ ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे
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