।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७३, बुधवार
बिन्दुमें सिन्धु


     (गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोता‒आप अपनी फोटो क्यों नहीं खिचवाते हमलोग फिर आपको याद कैसे करेंगे ?

स्वामीजी‒हमें नहीं, भगवान्‌को याद करो । फोटो खिंचवाना इसलिये बन्द किया कि लोग हमें याद करेंगे । हमें याद करनेसे फायदा नहीं है । फायदा भगवान्‌को याद करनेसे है । जो अपनी फोटो खिंचवाता है, वह भगवद्‌द्रोही है । भगवान्‌के चिन्तनमें बाधा लगा देना ठीक है क्या ?
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श्रोता‒स्त्री विधवा हो जाय तो उसका पुनः विवाह करना उचित है या नहीं ?

स्वामीजी‒नहीं करना चाहिये । शास्त्रकी आज्ञा नहीं है । विचार करें कि विवाह संज्ञा कब होती है, विवाह किसको कहते हैं ? जिसमें कन्यादान होता है । पिताने कन्यादान कर दिया और लेनेवाला मर गया, अब कन्यादान कौन करेगा ? और कन्यादानके बिना विवाह कैसे होगा ? उसकी विवाह संज्ञा होती ही नहीं ! वह विवाह नहीं, व्यभिचार है । पहले वेन’ नामका एक अधर्मी, दुष्ट राजा हुआ था, उसने विधवा-विवाह शुरू किया । उसकी बातको ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्योंने स्वीकार नहीं किया । शूद्रोंमें किसी-किसीने स्वीकार किया । अभी कलियुग है, इसलिये अधर्मका खूब प्रचार हो रहा है । लोगोंकी बुद्धि उल्टी हो रही है । वे वही काम करेंगे, जो शास्त्रविरुद्ध हो‒

बरन  धर्म  नहिं  आश्रम  चारी ।
श्रुति बिरोध रत सब नर नारी ॥
                              (मानस, उत्तर ९८ । १)

मनुष्यके कल्याणके लिये हिन्दू संस्कृतिमें ऋषि-मुनियोंने जितना उद्योग किया है, उतना किसीने नहीं किया है ।
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श्रोता‒भगवान्‌की पूजा और नामजप करते समय मन स्थिर नहीं रहता, इसके लिये क्या करना चाहिये ?

स्वामीजी‒नामजप करना मत छोड़ो । किसी भी तरहसे भगवान्‌का नाम आ जाय, बढ़िया है । मन लग जाय तो बहुत ही बढ़िया है । भगवान्‌की कृपापर विश्वास रखो । उनकी कृपासे मन लगेगा । भगवान्‌से प्रार्थना करो कि हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’

सबसे उत्तम चीज है‒भगवान्‌में प्रेम । इस प्रेमको पानेका तरीका एक ही है, और वह है‒भगवान्‌में अपनापन । बड़े-बड़े अनुष्ठानसे, त्यागसे, तपस्यासे प्रेम प्राप्त नहीं होता । प्रेम केवल भगवान्‌में अपनापन होनेसे ही प्राप्त होता है कि भगवान् मेरे हैं’

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे