।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष कृष्ण नवमी, वि.सं.२०७३, गुरुवार
बिन्दुमें सिन्धु


     (गत ब्लॉगसे आगेका)

अपनी चीज सबको अच्छी लगती है । जैसे बालकको अपनी माँ अच्छी लगती है, ऐसे ही भगवान् हमें अच्छे लगने चाहिये । भगवान्‌से हमारा कभी वियोग नहीं होता । यह बात याद रखो कि जिसका संयोग और वियोग होता है, वह चीज हमारी नहीं होती । यह पक्की, अकाट्य, सिद्धान्तकी बात है ।

भगवान्‌को हर समय याद करो । भगवान्‌को याद रखनेके समान कोई कीमती बात नहीं है । रात-दिन, सुबह-शाम हर समय भगवान्‌से प्रार्थना करो कि हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । भगवान्‌की स्मृति सम्पूर्ण विपत्तियोंका नाश करनेवाली है‒‘हरिस्मृतिः सर्वविपद्विमोक्षणम्’ (श्रीमद्भागवत ८ । १० । ५५) । केवल याद करनेसे भगवान् प्रसन्न हो जाते हैं ।
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अवगुणोंको छोड़नेसे लाभ होता है, गुणोंको धारण करनेसे लाभ होता है, और तात्त्विक बातोंको समझनेसे लाभ होता है । अपनी कमीका पता लगे तो उसका त्याग करना है, कोई अच्छी बात मिले तो उसको ग्रहण करना है, कोई तात्त्विक बात मिले तो उसको ठीक तरहसे समझना है‒ऐसी लगन लोगोंमें कम दीखती है । जैसे खेतको पहले साफ करते हैं, फिर उसमें बीज डालते हैं तो खेती बढ़िया होती है, ऐसे ही दुर्गुण-दुराचारका त्याग और सद्‌गुण-सदाचारका ग्रहण करके अन्तःकरण शुद्ध किया जाय, फिर तात्त्विक बातोंको समझा जाय तो बहुत जल्दी उन्नति होती है । जल्दी और सुगमतासे परमात्माकी प्राप्ति हो जाय‒ऐसी मेरी एक धुन है । मेरेको ऐसी बातें मिली हैं, जिनसे मनुष्य बहुत जल्दी उन्नति कर सकता है । परमात्माकी प्राप्ति कठिन नहीं है, खराब आदतको छोड़नेमें कठिनता होती है ।
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दो बातें होनेसे गीताके अनुसार जीवन बनता है‒अपने स्वार्थका त्याग और दूसरोंका हित । आज हमलोग नाशवान् चीजोंके स्वार्थमें फँसे हुए हैं । हमें रुपये, मान, बड़ाई, आदर, सत्कार मिल जाय, लोग हमें अच्छा मानें‒यह भाव जिनके भीतर भरा रहता है, वे गीताके मर्मको नहीं समझ सकते ।

सबसे पहली बात यह है कि हम परमात्माके अंश हैं, इसलिये हमें परमात्मा अच्छे लगने चाहिये । शरीर आदि जड़ वस्तुएँ संसारकी हैं । इसलिये संसारकी वस्तुओंको संसारकी ही सेवामें लगाना है । इस बातसे कामना त्याग बहुत सुगमतासे हो जायगा । कारण कि हम अपनी चीज संसारमें लगायें तो कामना करें; परन्तु संसारकी ही चीज संसारमें लगायें तो कामना किस बातकी ? ऐसे ही परमात्माकी चीज परमात्मामें लगा दी तो कामना किस बातकी ?   

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे