(गत ब्लॉगसे आगेका)
मूलमें हम परमात्माके अंश हैं और हमारा सम्बन्ध परमात्माके
साथ है‒ऐसा समझनेसे सब बातें सुगम हो जायँगी ।
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स्थूल, सूक्ष्म और कारण‒ये तीनों ही शरीर हमारे नहीं है । संसारकी रत्तीभर
भी कोई चीज हमारी नहीं है । केवल परमात्मा ही हमारे हैं । परमात्माके समान हमारा कोई
हुआ नहीं, कोई है नहीं, कोई होगा नहीं, होना सम्भव ही नहीं । आपको जँचे या
न जँचे, पर बात यही सच्ची है । आपको न जँचे तो भी मेरे कहनेसे
मान लो कि भगवान् हमारे हैं । जो मिलता है और छूट जाता है, वह हमारा नहीं है‒यह पहचान है । सच्ची बात रहेगी,
नकली सब छूट जायगी ।
भगवान् जैसे सन्त-महात्माके हैं,
वैसे ही हमारे हैं । उनमें कोई फर्क नहीं पड़ता । जैसे एक माँके
कई बालक हों तो प्रत्येक बालकके लिये माँ पूरी-की-पूरी है । माँके हिस्से नहीं होते
। ऐसे ही हरेक भाई-बहनके लिये भगवान् पूरे-के-पूरे हैं । माँमें पक्षपात रह सकता है,
पर भगवान्में पक्षपात है ही नहीं । माँमें अनजानपना रहता है,
पर भगवान्में अनजानपना है ही नहीं,
वे सब समझते हैं । माँ भूल जाती है,
पर भगवान् नहीं भूलते । माँ हर समय साथ नहीं रहती,
पर भगवान् हर समय हमारे साथ रहते हैं । माँ सब जगह नहीं रहती,
पर भगवान् सब जगह रहते हैं । हम कहीं भी चले जायँ,
नरकोंमें भी चले जायँ तो भी भगवान् हमारे साथ रहते हैं ।
जिस समय आप भगवान्को याद करते हैं, उस
समय आपका सम्बन्ध भगवान्के साथ होता है,
आपकी स्थिति भगवान्में होती है ।
जैसे मीराबाईने कहा कि ‘मेरे
तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई’, ऐसे आप सब-के-सब कह सकते हैं । ऐसा कहनेका
सबको अधिकार है । पापी-से-पापी भी भगवान्को अपना कह सकता है । जो भगवान्को अपना मान लेता है, वह
संसारसे ऊँचा उठ जाता है, सन्त-महात्मा हो जाता है । उसको शान्ति मिल जाती
है, आनन्द मिल जाता है । उसको किसी चीजकी परवाह नहीं रहती । इसलिये भगवान्को अपना मानकर
मस्त हो जाओ । ‘मैं भगवान्का हूँ’‒इस
बातको भूलो मत तो भगवान् जरूर मिलेंगे । अपने-आप सत्संग मिलेगा, सन्त-महात्मा
मिलेंगे ।
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भगवान्ने मनुष्यको अपना कल्याण करनेकी स्वतन्त्रता दी है ।
अगर भगवान् मनुष्यको परतन्त्र कर दें तो फिर उसका कल्याण कैसे होगा ?
कल्याणका मौका कहाँ मिलेगा ?
शास्त्र, सत्संग, गुरु, सन्त-महात्मा आदि किस काम आयेंगे ?
सब व्यर्थ हो जायँगे ! जैसे किसीको बन्दूक दी जाती है तो अपनी
रक्षाके लिये दी जाती है, दूसरेको मारनेके लिये नहीं । अगर वह उस बन्दूकसे किसीको मारता
है तो उसको दण्ड होता है । इसी तरह भगवान्ने मनुष्यको अपना कल्याण करनेके लिये स्वतन्त्रता
दी है, पाप करनेके लिये नहीं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे
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