।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष कृष्ण दशमी, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
एकादशी-व्रत कल है
बिन्दुमें सिन्धु


     (गत ब्लॉगसे आगेका)

मूलमें हम परमात्माके अंश हैं और हमारा सम्बन्ध परमात्माके साथ है‒ऐसा समझनेसे सब बातें सुगम हो जायँगी ।
☀☀☀☀☀
स्थूल, सूक्ष्म और कारण‒ये तीनों ही शरीर हमारे नहीं है । संसारकी रत्तीभर भी कोई चीज हमारी नहीं है । केवल परमात्मा ही हमारे हैं । परमात्माके समान हमारा कोई हुआ नहीं, कोई है नहीं, कोई होगा नहीं, होना सम्भव ही नहीं । आपको जँचे या न जँचे, पर बात यही सच्ची है । आपको न जँचे तो भी मेरे कहनेसे मान लो कि भगवान् हमारे हैं । जो मिलता है और छूट जाता है, वह हमारा नहीं है‒यह पहचान है । सच्ची बात रहेगी, नकली सब छूट जायगी ।

भगवान् जैसे सन्त-महात्माके हैं, वैसे ही हमारे हैं । उनमें कोई फर्क नहीं पड़ता । जैसे एक माँके कई बालक हों तो प्रत्येक बालकके लिये माँ पूरी-की-पूरी है । माँके हिस्से नहीं होते । ऐसे ही हरेक भाई-बहनके लिये भगवान् पूरे-के-पूरे हैं । माँमें पक्षपात रह सकता है, पर भगवान्‌में पक्षपात है ही नहीं । माँमें अनजानपना रहता है, पर भगवान्‌में अनजानपना है ही नहीं, वे सब समझते हैं । माँ भूल जाती है, पर भगवान् नहीं भूलते । माँ हर समय साथ नहीं रहती, पर भगवान् हर समय हमारे साथ रहते हैं । माँ सब जगह नहीं रहती, पर भगवान् सब जगह रहते हैं । हम कहीं भी चले जायँ, नरकोंमें भी चले जायँ तो भी भगवान् हमारे साथ रहते हैं ।

जिस समय आप भगवान्‌को याद करते हैं, उस समय आपका सम्बन्ध भगवान्‌के साथ होता है, आपकी स्थिति भगवान्‌में होती है ।

जैसे मीराबाईने कहा कि मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई’,  ऐसे आप सब-के-सब कह सकते हैं । ऐसा कहनेका सबको अधिकार है । पापी-से-पापी भी भगवान्‌को अपना कह सकता है । जो भगवान्‌को अपना मान लेता है, वह संसारसे ऊँचा उठ जाता है, सन्त-महात्मा हो जाता है । उसको शान्ति मिल जाती है, आनन्द मिल जाता है । उसको किसी चीजकी परवाह नहीं रहती । इसलिये भगवान्‌को अपना मानकर मस्त हो जाओ । मैं भगवान्‌का हूँ’इस बातको भूलो मत तो भगवान् जरूर मिलेंगे । अपने-आप सत्संग मिलेगा, सन्त-महात्मा मिलेंगे ।
☀☀☀☀☀
भगवान्‌ने मनुष्यको अपना कल्याण करनेकी स्वतन्त्रता दी है । अगर भगवान् मनुष्यको परतन्त्र कर दें तो फिर उसका कल्याण कैसे होगा ? कल्याणका मौका कहाँ मिलेगा ? शास्त्र, सत्संग, गुरु, सन्त-महात्मा आदि किस काम आयेंगे ? सब व्यर्थ हो जायँगे ! जैसे किसीको बन्दूक दी जाती है तो अपनी रक्षाके लिये दी जाती है, दूसरेको मारनेके लिये नहीं । अगर वह उस बन्दूकसे किसीको मारता है तो उसको दण्ड होता है । इसी तरह भगवान्‌ने मनुष्यको अपना कल्याण करनेके लिये स्वतन्त्रता दी है, पाप करनेके लिये नहीं ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे