।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष कृष्ण द्वादशी, वि.सं.२०७३, रविवार
बिन्दुमें सिन्धु


     (गत ब्लॉगसे आगेका)

सन्तोंकी वाणीमें मेरेको ऐसी विशेष बातें मिली हैं, जो अभीतक शास्त्रोंमें भी नहीं आयी हैं ! उनमेंसे एक बात है कि परमात्माकी प्राप्ति जड़ताकी सहायतासे नहीं होती । यह बहुत ही मार्मिक बात है, मामूली बात नहीं है ! परन्तु इस बातको हरेक आदमी समझेगा नहीं, विचार करनेवाला ही समझेगा । जड़के द्वारा चिन्मयताकी प्राप्ति नहीं होती; परन्तु जड़के त्यागसे चिन्मयताकी प्राप्ति जरूर होती है । शास्त्रमें प्रायः जड़ताकी सहायताकी ही बात आती है । लोग जैसे जड़ चीजोंकी प्राप्ति करते हैं, ऐसे ही उपायसे परमात्माकी प्राप्ति करना चाहते हैं । परन्तु ऐसे परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती । जड़ चीज है‒पदार्थ और क्रिया । शरीरादि सम्पूर्ण वस्तुएँ पदार्थ’ हैं और कहना, सुनना, समझना, विचार करना आदि सब क्रिया’ है । ये पदार्थ और क्रिया परमात्माकी प्राप्तिमें सहायक तो हैं, पर ये प्राप्ति नहीं करा सकते । इनसे ऊँचा उठनेपर ही परमात्माकी प्राप्ति होती है । मैंने उद्योग करके देखा है । इस विषयमें मेरा अनुभव भी है । मैंने इस विषयको साधन और साध्य’ पुस्तकमें विस्तारसे लिखा है, आप पढ़कर देखो ।
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सबसे विलक्षण चीज है‒भगवान्‌के साथ सम्बन्ध । सम्बन्ध जोड़नेसे बहुत जल्दी उन्नति होती है । भगवन्नामका जप, ध्यान, कीर्तन आदि निरन्तर नहीं होते, बीचमें अन्तर पड़ता है; परन्तु भगवान्‌के सम्बन्धमें अन्तर नहीं पड़ता । जैसे नींद लेनेसे विवाहका सम्बन्ध मिट नहीं जाता, ऐसे ही नींद लेनेसे अथवा भूल जानेसे भगवान्‌का सम्बन्ध मिट नहीं जाता । यह नित्य-निरन्तर अटल रहता है । जप आदि करनेमें थकावट भी होती है, पर सम्बन्धमें थकावट होती ही नहीं । यह सम्बन्ध तत्काल होता है और सदाके लिये होता है, जैसे विवाह । आप तोड़ो, तभी टूटता है । आप भगवान्‌को अपना मान लो तो इस सम्बन्धको भगवान् भी तोड़ नहीं सकते । सूरदासजीने कहा है‒

हस्तमुत्क्षिप्य यातोऽसि बलात्कृष्ण किमद्भुतम् ।
हृदयाद्यदि    निर्यासि   पौरुषं   गणयामि   ते ॥

हाथ छुड़ाये जात हौ, निबल जानि कै मोहि ।
हिरदै ते जब जाहुगे,  सबल  बदौंगो  तोहि ॥
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आपके पास दो कीमती चीजें हैं‒समय और सम्बन्ध । समयको भगवान्‌में लगाओ और सम्बन्ध भगवान्‌से जोड़ो । हम भगवान्‌के अंश हैं, इसलिये भगवान्‌के साथ हमारा स्वाभाविक ही नित्य-सम्बन्ध है । आपने सम्बन्ध तोड़ा है, भगवान्‌ने नहीं । आप जब सम्बन्ध जोड़ोगे, तब जुड़ जायगा । सम्बन्ध जोड़नेमें आप स्वतन्त्र हैं ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे