(गत ब्लॉगसे आगेका)
सन्तोंकी वाणीमें मेरेको ऐसी विशेष बातें मिली हैं,
जो अभीतक शास्त्रोंमें भी नहीं आयी हैं ! उनमेंसे एक बात है
कि परमात्माकी प्राप्ति जड़ताकी सहायतासे नहीं होती । यह बहुत
ही मार्मिक बात है, मामूली बात नहीं है ! परन्तु इस बातको हरेक आदमी समझेगा नहीं,
विचार करनेवाला ही समझेगा । जड़के द्वारा चिन्मयताकी प्राप्ति
नहीं होती; परन्तु जड़के त्यागसे चिन्मयताकी प्राप्ति जरूर होती है । शास्त्रमें
प्रायः जड़ताकी सहायताकी ही बात आती है । लोग जैसे जड़ चीजोंकी प्राप्ति करते हैं,
ऐसे ही उपायसे परमात्माकी प्राप्ति करना चाहते हैं । परन्तु
ऐसे परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती । जड़ चीज है‒पदार्थ और क्रिया । शरीरादि सम्पूर्ण
वस्तुएँ ‘पदार्थ’ हैं और कहना, सुनना, समझना, विचार करना आदि सब ‘क्रिया’ है । ये पदार्थ और क्रिया परमात्माकी प्राप्तिमें सहायक तो हैं,
पर ये प्राप्ति नहीं करा सकते । इनसे ऊँचा उठनेपर ही परमात्माकी
प्राप्ति होती है । मैंने उद्योग करके देखा है । इस विषयमें मेरा अनुभव भी है । मैंने
इस विषयको ‘साधन और साध्य’
पुस्तकमें विस्तारसे लिखा है,
आप पढ़कर देखो ।
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सबसे विलक्षण चीज है‒भगवान्के साथ सम्बन्ध । सम्बन्ध जोड़नेसे
बहुत जल्दी उन्नति होती है । भगवन्नामका जप,
ध्यान, कीर्तन आदि निरन्तर नहीं होते,
बीचमें अन्तर पड़ता है;
परन्तु भगवान्के सम्बन्धमें अन्तर नहीं पड़ता । जैसे नींद लेनेसे
विवाहका सम्बन्ध मिट नहीं जाता, ऐसे ही नींद लेनेसे अथवा भूल जानेसे भगवान्का सम्बन्ध मिट नहीं
जाता । यह नित्य-निरन्तर अटल रहता है । जप आदि करनेमें थकावट भी होती है,
पर सम्बन्धमें थकावट होती ही नहीं । यह सम्बन्ध तत्काल होता
है और सदाके लिये होता है, जैसे विवाह । आप तोड़ो,
तभी टूटता है । आप भगवान्को अपना मान लो तो इस सम्बन्धको भगवान्
भी तोड़ नहीं सकते । सूरदासजीने कहा है‒
हस्तमुत्क्षिप्य यातोऽसि बलात्कृष्ण किमद्भुतम् ।
हृदयाद्यदि निर्यासि पौरुषं गणयामि ते ॥
हाथ छुड़ाये जात हौ, निबल जानि कै मोहि ।
हिरदै ते जब जाहुगे, सबल बदौंगो
तोहि ॥
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आपके पास दो कीमती चीजें हैं‒समय और सम्बन्ध । समयको भगवान्में लगाओ और सम्बन्ध भगवान्से जोड़ो । हम भगवान्के
अंश हैं, इसलिये भगवान्के साथ हमारा स्वाभाविक ही नित्य-सम्बन्ध है ।
आपने सम्बन्ध तोड़ा है, भगवान्ने नहीं । आप जब सम्बन्ध जोड़ोगे,
तब जुड़ जायगा । सम्बन्ध जोड़नेमें आप स्वतन्त्र हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे
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