।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
बिन्दुमें सिन्धु


     (गत ब्लॉगसे आगेका)

पैदल चलें तो एक-एक कदम भगवान्‌के अर्पण करें । यहाँ आयें तो भगवान्‌का काम, जायँ तो भगवान्‌का काम, बैठें तो भगवान्‌का काम, सुनें तो भगवान्‌का काम, सुनायें तो भगवान्‌का काम । हरेक काम प्रसन्नतापूर्वक भगवान्‌के लिये करें तो सब-का-सब भजन हो जायगा । केवल भाव बदलना है । यह संसारमें रहते हुए ही परमात्माको प्राप्त करनेकी युक्ति है । संसारका त्याग करके एकान्तमें रहकर भजन करनेवाले सन्त जिस तत्त्वको प्राप्त करते हैं, उसी तत्त्वको आप गृहस्थमें रहते हुए ही प्राप्त कर सकते हैं । भगवान्‌का काम करनेवाले संसारमें रहते हुए भी संसारमें नहीं रहते, किन्तु भगवान्‌में रहते हैं ।
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जैसे क्रिया’ अपनी नहीं है, ऐसे ही पदार्थ’ भी अपने नहीं हैं । हम संसारमें आये थे तो साथमें कुछ लाये नहीं थे, और जायँगे तो शरीर भी साथ नहीं जायगा । हमारे पास जो कुछ है, सब भगवान्‌का दिया हुआ है । अतः क्रिया और पदार्थ‒दोनोंको ही भगवान्‌के अर्पण कर दो । एकनाथजी महाराजने भागवतके एकादश स्कन्धकी जो टीका लिखी है, उसमें वर्णन आया है कि घरमें झाड़ूसे फूस-कचरा इकट्ठा करके बाहर फेंके तो वह भी भगवान्‌के अर्पण कर दे । वह भी भजन हो जायगा !
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सभी भाई-बहन आजसे अपने-आपको बदल दें कि हम संसारी नहीं हैं, हम भगवान्‌के हैं । वास्तवमें हम पहलेसे ही भगवान्‌के थे, पर हमारा उधर ध्यान नहीं था । अब उधर हमारा ध्यान चला गया । अर्जुनने भी गीताके अन्तमें भगवान्‌से यही कहा कि आपकी कृपासे मेरा मोह नष्ट हो गया और स्मृति प्राप्त हो गयी अर्थात् भूल मिट गयी और याद आ गयी कि मैं भगवान्‌का हूँ‒नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत’ (गीता १८ । ७३) । वह कृपा हम सबपर है । कलियुगमें भगवान्‌की विशेष कृपा होती है । अन्य युगोंकी अपेक्षा कलियुगमें भगवान् जल्दी मिलते हैं । अन्य युगोंमें वर्षोंतक भजन-ध्यान करनेपर जो प्राप्ति होती है, वह कलियुगमें दिनोंमें हो जाती है ! कारण कि इस समय भगवान्‌को कोई पूछता नहीं ! जिसको कोई नहीं पूछता, वह वस्तु सस्ती हो जाती है । जिस वस्तुके ग्राहक ज्यादा होते हैं, वह वस्तु मँहगी होती है । आज भगवान् निकम्मे बैठे हैं; क्योंकि लोग राग-द्वेष, काम-क्रोध, लोभ-मोह आदिमें लगे हुए हैं !
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हम भगवान्‌के हैं और संसारमें आकर भगवान्‌का ही काम करते हैं‒ऐसा मान लें । आप शौच-स्नान, सन्ध्या-वन्दन आदि सब काम भगवान्‌का ही करते हैं । आप स्नान करते हैं तो भगवान्‌का काम, कपड़े धोते हैं तो भगवान्‌का काम, माताएँ-बहनें रसोई बनाती हैं तो भगवान्‌का काम, भोजन करते हैं तो भगवान्‌का काम, कुल्ला करते हैं तो भगवान्‌का काम, जल पीते हैं तो भगवान्‌का काम, व्यापार करते हैं तो भगवान्‌का काम, खेती करते हैं तो भगवान्‌का काम । जो कुछ करते हैं, भगवान्‌का ही काम करते हैं । ऐसा करनेसे आपका जीवन महान् पवित्र हो जायगा ! आप सन्त हो जायँगे ! आपके हाथका अन्न-जल पवित्र हो जायगा !

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे