।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७३, रविवार
गीतामें फलसहित विविध उपासनाओंका वर्णन


  प्रश्र‒जो भूत-प्रेतकी बाधाको दूर किया करते हैं, ऐसे तांत्रिकोंकी मरनेके बाद क्या गति होती है ?

उत्तर‒भूत-प्रेतकी बाधा दूर करनेवाले तांत्रिक भी मरनेके बाद प्रायः भूत-प्रेत ही बनते हैं; इसके अनेक कारण हैं; जैसे‒

(१) भूत-प्रेत निकालनेवाले तांत्रिकोंकी विद्या प्रायः मलिन होती है । उनका खान-पान एवं चिन्तन भी मलिन होता हैं । उस मलिनताके कारण उनकी दुर्गति होती है अर्थात् वे मरनेके बाद प्रेतयोनिमें चले जाते हैं ।

(२) भूत-प्रेत किसीके शरीरमें प्रविष्ट होते हैं तो उनको वहाँ सुख मिलता है, खाने-पीनेके लिये अच्छे पदार्थ मिलते हैं; अतः वे वहाँसे निकलना नहीं चाहते । परंतु तांत्रिक लोग मन्त्रोंके द्वारा उनको जबरदस्ती निकालते हैं और मदिराकी बोतलमें बन्द करके उनको जमीनमें गाड़ देते हैं अथवा किसी वृक्षमें कीलित कर देते हैं, जहाँ वे सैकड़ों वर्षोतक भूखे-प्यासे रहकर महान् दुःख पाते रहते हैं । उनको इस प्रकार दुःख देना बड़ा भारी पाप है; क्योंकि किसी भी जीवको दुःख देना पाप है । अतः उस पापके फलस्वरूप वे तांत्रिक मरनेके बाद प्रेतयोनिमें चले जाते हैं ।

(३) भूत-प्रेतको निकालनेवाले तांत्रिकोंमें प्रायः दूसरोंके हितकी भावना नहीं होती । वे केवल पैसोंके लोभसे ही इस कार्यमें प्रवृत्त होते हैं । वे ठगाई और चालाकी भी करते हैं । इस कारण भी उनको मरनेके बाद भूत-प्रेत बनना पड़ता है ।

अगर तांत्रिकोंमें निःस्वार्थभावसे सबका हित करनेकी, उपकार करनेकी भावना हो अर्थात् जिसको भूत-प्रेतने पकड़ा है, उस व्यक्तिको सुखी करनेकी और भूत-प्रेतको निकालकर उसकी (गयाश्राद्ध आदिके द्वारा) सद्‌गति करनेकी भावना हो, चेष्टा हो तो वे भूत-प्रेत नहीं बन सकते । जिनमें सबके हितकी भावना है, उनकी कभी दुर्गति हो ही नहीं सकती । भगवान्‌ने कहा है कि जो सम्पूर्ण प्राणियोंके हितमें रत रहते है, वे मेरेको ही प्राप्त होते हैं‒ते प्राप्रुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः’ (१२ । ४)

प्रश्र‒भूत-प्रेतोंको बोतलमें बन्द करने कीलित करने आदिमें उन भूत-प्रेतोंके कर्म कारण हैं, या बन्द करनेवाले कारण हैं ?

उत्तर‒मुख्यरूपसे उनके कर्म ही कारण हैं । उनका कोई ऐसा पापकर्म आ जाता है, जिसके कारण वे पकड़में आ जाते हैं । अगर उनके कर्म न हों तो वे किसीकी पकड़में नहीं आ सकते । परन्तु जो उनको कीलित आदि करनेमें निमित्त बनते हैं, वे बड़ा भारी पाप करतै हैं । अतः मनुष्यको भूत-प्रेतोंके बन्धन, कीलनमें निमित्त बनकर पापका भागी नहीं होना चाहिये । हाँ, उनके उद्धारके लिये उनके नामसे भागवत-सप्ताह, गयाश्राद्ध, भगवन्नाम-जप आदि करना चाहिये अथवा वे भूत-प्रेत अपनी मुक्तिका जो उपाय बतायें, उस उपायको करना चाहिये । जो इस प्रकार प्रेतात्माओंकी सद्‌गति करता एवं कराता है, उसको बड़ा भारी पुण्य होता है एवं वे दुःखी प्रेतात्मा भी प्रेतयोनिसे छूटनेपर उसको आशीर्वाद देते हैं ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे