।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
गर्भपात महापाप क्यों ?


(गत ब्लॉगसे आगेका)

यदि अन्नपर गर्भपात करनेवाले पापीकी दृष्टि भी पड़ जाय तो वह अन्न अभक्ष्य (न खानेयोग्य) हो जाता है‒

भ्रूणघ्नोवेक्षितं चैव संस्पृष्टं चाप्युदक्यया ।
पतत्रिणाऽवलीढं  च शुना संस्पृष्टमेव च ॥
                                          (मनुस्मृति ४ । २०८)

‘गर्भहत्या करनेवालेका देखा हुआ, रजस्वला स्त्रीका स्पर्श किया हुआ, पक्षीका खाया हुआ और कुत्तेका स्पर्श किया हुआ अन्न न खाये ।’

मनुष्य-शरीरको बड़ा दुर्लभ बताया गया है‒

बड़े  भाग  मानुष  तनु पावा ।
सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा ॥
                                 (मानस, उत्तर ४३ । ४)

दुर्लभो मानुषो देहो देहिनां क्षणभंगुरः ।
                             (श्रीमद्भा ११ । २ । २९)

परमकृपालु भगवान् विशेष कृपा करके जीवको मनुष्य-शरीर देते हैं‒

कबहुँक करि करुना नर देही ।
देत  ईस   बिनु  हेतु  सनेही ॥
                              (मानस, उत्तर ४४ । ३)

जीव मनुष्य-शरीरमें आकर अपना और दूसरोंका भी उद्धार कर सकता है । वह सबकी सेवा कर सकता है, यहाँतक कि भगवान्‌की भी सेवा कर सकता है ! परन्तु अपनी भोगेच्छाके वशीभूत होकर उस जीवको ऐसा दुर्लभ मौका न मिलने देना, उसको मनुष्य-शरीरमें न आने देना, उसको जन्म ही न लेने देना, जन्म लेनेसे पहले ही उसकी हत्या कर देना कितना महान् पाप है ! उस जीवके साथ कितना घोर अन्याय है !

ऐसा महान् पाप करनेवालोंको घोर नरकों तथा नीच योनियोंकी भयंकर यातना भोगनी पड़ेगी । उनको कभी मनुष्यजन्म मिल जाय तो उसमें उनकी सन्तान नहीं होगी । सन्तानके बिना वे रोते रहेंगे ! ब्रह्मवैवर्तपुराण (प्रकृतिखण्ड, द्वितीय अध्याय) में आया है कि मूल प्रकृतिने अपने गर्भको ब्रह्माण्ड-गोलकके जलमें फेंक दिया तो आगे उससे प्रकट होनेवाली लक्ष्मी, सरस्वती, राधा तथा राधासे प्रकट होनेवाली गोपियोंमेंसे किसीकी भी कोई सन्तान नहीं हुई ।

शंका‒गर्भपात करनेसे अगले जन्मोंमें सन्तान नहीं होगी तो यह अभीष्ट ही है अर्थात् जनसंख्या नहीं बढ़ेगी, फिर सन्तान न होनेसे क्या हानि है ?

समाधान‒सन्तानके सुखसे वंचित होनेकी अवस्थाका अनुभव उन्हीं गृहस्थोंको हो सकता है, जिनकी कोई सन्तान हुई ही नहीं । मनुष्यमें पुत्रैषणा, वित्तैषणा और लोकैषणा‒ये तीन मुख्य एषणाएँ (इच्छाएँ) मानी गयी हैं । जिनकी सन्तान नहीं होती, वे सन्तानके लिये जगह-जगह भटकते हैं, डॉक्टरोंके पास जाते हैं, सन्त-महात्माओंके पास जाते हैं, तीर्थोंमें जाते हैं, औषध लेते हैं, मन्त्र-जप करते हैं, देव-देवताओंकी मनौती करते हैं, ईश्वरसे प्रार्थना करते हैं, आदि- आदि ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)  
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे