।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल चतुर्दशीवि.सं.२०७३, बुधवार
गर्भपात महापाप क्यों ?


(गत ब्लॉगसे आगेका)

राजा दिलीपकी कोई सन्तान नहीं थी तो राजा-रानी दोनोंने वसिष्ठजीकी गायकी रात-दिन तन-मनसे सेवा की । गायके वरदानसे उनको पुत्रकी प्राप्ति हुई । उस पुत्र (रघु) से ‘रघुवंश’ चला । राजा दशरथ भी सन्तानके बिना दुःखी हुए और इसके लिये उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया‒

एक बार  भूपति  मन  माहीं ।
भैं  गलानि  मोरें  सुत  नाहीं ॥
सृंगी रिषिहि बसिष्ठ बोलावा ।
पुत्रकाम  सुभ  जग्य  करावा ॥
                                (मानस, बाल १८९ । १, ३)

कारण कि सन्तान न होनेसे पिताको चिन्ता होती है कि मेरा वंश आगे कैसे चलेगा ? मेरी धन-सम्पत्ति, जमीन-जायदादका मालिक कौन बनेगा ? हम बीमार अथवा बूढ़े हो जायँगे तो हमारी सेवा कौन करेगा ? हमारे मरनेके बाद हमें पिण्ड-पानी कौन देगा, आदि-आदि ।

बच्चोंको देखनेसे, उनको खिलाने और खेलानेसे बड़ा सुख मिलता है । अपने बच्चोंका तो कहना ही क्या, कुत्ते, गधे आदिके भी नवजात शिशुको देखकर एक हर्ष होता है, उसको प्यार करनेकी इच्छा होती है !

ऐसा देखा गया है कि घरमें जब जेठानीकी सन्तान नहीं होती और वह देवरानीके बच्चोंको तथा उसकी बहुओंको देखती है तो उसके मनमें बड़ा दुःख होता है कि मैं बड़ी हूँ, पर मेरी सन्तान नहीं है । यदि मेरी सन्तान होती तो मैं उसका विवाह करती, बहूको घरमें लाती, वह मेरी सेवा करती ! बेटेकी सन्तान‒पोता तो बेटेसे भी ज्यादा प्यारा लगता है । एक कहावत भी है कि मूलसे भी ब्याज ज्यादा प्यारा लगता है ! इस प्रकार सन्तान होनेका जो सुख होता है, वे गर्भपात करनेवाले जन्म-जन्मान्तरोंतक नहीं देखे सकेंगे । कारण कि गर्भपात करनेवालेकी अगले मनुष्यजन्ममें सन्तान नहीं होगी ।

यह सिद्धान्त है कि जो जिस वस्तुका दुरुपयोग करता है, उसको वह वस्तु पुनः नहीं मिलती । माँ बच्चेको मिठाई देती है, पर वह उसको न खाकर नालीमें फेंक देता है तो फिर माँ उसको मिठाई न देकर थप्पड़ लगाती है । ऐसे ही भगवान् कृपा करके मनुष्य-शरीर देते हैं, पर मनुष्य उस शरीरका दुरुपयोग करता है, पाप करता है, तो फिर भगवान् उसको पुनः मनुष्य-शरीर न देकर नरकों और नीच योनियोंमें डालते हैं । बालक तो नासमझ होता है, इसलिये माँ उसको पुनः मिठाई दे देती है, पर मनुष्य समझपूर्वक, जान-बूझकर पाप करता है; अतः उसको भगवान् पुनः मनुष्य-शरीर नहीं देंगे । इसी तरह जो अन्न-जलको निरर्थक नष्ट करता है, उसको भूख-प्यासका कष्ट उठाना पड़ेगा । जो मालिक अच्छे नौकरका तिरस्कार करता है, उसको फिर अच्छा नौकर नहीं मिलेगा । जो नौकर अच्छे मालिकका तिरस्कार करता है, उसको फिर अच्छा मालिक नहीं मिलेगा । जो अच्छे सन्तका तिरस्कार करता है अर्थात् उनसे लाभ नहीं उठाता, उसको फिर अच्छे सन्त नहीं मिलेंगे ! ऐसे ही जो गर्भमें आये जीवकी हत्या करता है, उसकी फिर मनुष्यजन्ममें सन्तान नहीं होगी । गर्भपात तो सबसे भयंकर अपराध है; क्योंकि एक तो सन्तानके उद्देश्यके बिना केवल भोग भोगा‒‘हतं मैथुनमप्रजम्’ और दूसरा, उससे पैदा हुए गर्भकी हत्या की ! नाशका परिणाम भयंकर विनाश होता है । अतः भावी घोर यातनासे बचनेके लिये समझदार स्त्री-पुरुषोंको कभी गर्भपातरूपी महापाप नहीं करना चाहिये ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे