।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.२०७३, सोमवार
स्त्रीके दो रूप‒कामिनी और माता


(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रीणाति मातरं येन पृथिवी तेन पूजिता ॥
                                                         (महा, शान्ति १०८ । २५)

‘मनुष्य जिस क्रियासे माताको प्रसन्न कर लेता है, उस क्रियासे सम्पूर्ण पृथ्वीका पूजन हो जाता है ।’

हिन्दू-संस्कृतिमें परमात्माको पुरुष (भगवान्) और स्त्री (भगवती)‒दोनों रूपोंमें स्वीकार करके उनकी उपासनाका विधान किया गया है । इसलिये ईश्वरकोटिके पंचदेवोंमें विष्णु, शंकर,गणेश और सूर्यके साथ भगवतीको भी समान स्थान दिया गया है ।

ईसाईयोंकी पवित्र ‘बाइबिल’ और मुसलमानोंकी ‘कुरान शरीफ’ को देखें तो उनमें भी मातृरूपसे ही स्त्रियोंको महत्त्व दिया गया है, भोग्यारूपसे नहीं । पवित्र 'बाइबिल' के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं[*]

(१) तू अपने पिता और अपनी माताका आदर करना (पुराना नियम, निर्गमन २० । १२, व्यवस्था ५ । १६) ।

(२) तुम अपनी-अपनी माता और अपने-अपने पिताका भय मानना (पुराना नियम, लैव्य १९ । ३) ।

(३) शापित हो वह जो अपने पिता वा माताको तुच्छ जाने (पुराना नियम, व्यवस्था २७ । १६) ।

(४) मूढ़ अपने पिताकी शिक्षाका तिरस्कार करता है; परन्तु जो डाँटको मानता है, वह चतुर हो जाता है (पुराना नियम, नीति १५ । ५) ।

(५) अपने जन्मानेवालेकी सुनना, और जब तेरी माता बुढ़िया हो जाय, तब भी उसे तुच्छ न जानना (पुराना नियम, नीति २३ । २२) ।

(६) जिस आँखसे कोई अपने पितापर अनादरकी दृष्टि करे और अपमानके साथ अपनी माताकी आज्ञा न माने, उस आँखको तराईके कौवे खोद-खोदकर निकालेंगे और उकाबके बच्चे खा डालेंगे (पुराना नियम, नीति ३० । १७) ।

(७) अपने पिता और अपनी माताका आदर करना, जो कोई पिता या माताको बुरा कहे, वह मार डाला जाय (नया नियम, मत्ती १५ । ४) ।

(८) हे बालको, प्रभुमें अपने माता-पिताके आज्ञाकारी बनो (नया नियम, इफिसियो ६ । १) ।

(९) हे बालको, सब बातोंमें अपने-अपने माता-पिताकी आज्ञाका पालन करो; क्योंकि प्रभु इससे प्रसन्न होता है (नया नियम, कुलुस्सियो ३ । १८) ।

(१०) मैं कहता हूँ कि स्त्री न उपदेश करे और न पुरुषपर आज्ञा चलाये; परन्तु चुपचाप रहे; क्योंकि आदम पहले, उसके बाद हव्वा बनायी गयी । आदम बहकाया न गया, पर स्त्री बहकावेमें आकर अपराधिनी हुई । तो भी बच्चे जननेके द्वारा उद्धार पायेगी, यदि वे संयमसहित विश्वास, प्रेम और पवित्रतामें स्थिर रहें (नया नियम, १‒तीमुथियुस २ । १२‒१५) ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सन्त-समागम’ पुस्तकसे



[*] सन्दर्भ-बाइबिल सोसाइटी ऑफ इण्डिया, २०६ महात्मा गाँधी रोड, बेंगलोर‒५६०००१