।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ कृष्ण पंचमी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
स्त्रीके दो रूप‒कामिनी और माता


(गत ब्लॉगसे आगेका)

‘कुरान शरीफ’ के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं[*]

(१) तुम्हारे परवरदिगारका हुक्म है कि उसके सिवाय किसीकी इबादत न करो और माता-पिताके साथ अच्छा सलूक करो । अगर (माता-पितामेंसे) एक या दोनों तुम्हारे सामने बुढ़ापेको पहुँच जायँ तो उनके आगे (जवाबदेहीमें) ‘हूँ’ भी मत करना और न उनको झिड़कना और (उनके साथ) अदबके साथ बोलना और प्यारसे आजिजी (विनम्रता)-के साथ उनके सामने बाजू झुकाये रखना और दुआ करते रहना कि ए मेरे परवरदिगार ! जिस तरह उन्होंने मुझे छोटे-से पाला है, उसी तरह तू भी इनपर (अपनी) कृपा कर ( १५ । १७ । २३-२४) ।

(२) हमने आदमीको माता-पिताके साथ भलाई करनेकी ताकीद की है कि उसकी माताने उसको पेटमें रखा तकलीफ उठाकर और उसक जना तकलीफ उठाकर (२६ । ४६ ।१५)

बड़े खेदकी बात है कि वर्तमानमें स्त्रीके भोग्यारूपको ही महत्त्व दिया जा रहा है और सन्तति-निरोध, गर्भपात आदि उपायोंसे तथा विज्ञापनोंसे स्त्रीके मातृरूपका तिरस्कार किया जा रहा है । वृद्धावस्था आनेपर स्त्रीका भोग्यारूप तो नष्ट हो जाता है, पर मातृरूप सदा आदरणीय रहता है । आश्चर्यकी बात है कि वर्तमानमें स्त्रियाँ भी भोग्या बनना चाहती हैं, माता नहीं ! आजकल स्त्री-पुरुषके समान अधिकारकी बात की जाती है; परन्तु भोग्या स्त्री कभी पुरुषके समान अधिकार नहीं पा सकती । हाँ, मातृरूपसे वह पुरुषसे भी ऊँचा स्थान प्राप्त कर सकती है । इसलिये भोग्या स्त्रीके लिये कहा गया है‒

          द्वारं किमेकं नरकस्य नारी’ (प्रश्नोत्तरी ३)

‘नरकका प्रधान द्वार क्या है ? नारी ।’

और मातृरूपके लिये कहा गया है‒

          ‘मातृदेवो भव’ (तैत्तिरीय १ । ११)

‘माताको देवरूप समझो ।’

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘सन्त-समागम’ पुस्तकसे


[*] सन्दर्भ‒लखनऊ किताबघर, शेरवानी संस्करण ।