।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७३, सोमवार
गीतामें फलसहित विविध उपासनाओंका वर्णन


  (गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न‒भूत-प्रेतोंको कीलित करनेवाले तांत्रिक तो उनके कर्मोंका फल भुगतानेमें सहायक ही बनते हैं, तो फिर उनको पाप क्यों लगता है ?

उत्तर‒वे जिनको कीलित कर देते हैं, जमीनमें गाड़ देते हैं, उन भूत-प्रेतोंका तो यह कर्मफल-भोग है, पर उनको कीलित करनेवालोंका यह नया पाप-कर्म है, जिसका दण्ड उनको आगे मिलेगा । जैसे, कोई जानवरको मारता है तो जानवर अपनी मृत्यु आनेसे ही मरता है । उसकी मृत्यु आये बिना उसको कोई मार ही नहीं सकता । परन्तु उसको मारनेवाला नया पाप करता है; क्योंकि वह लोभ, कामना, स्वार्थ आदिको लेकर ही उसको मारता है । जब कामना आदिको लेकर किया हुआ शुभ-कर्म भी बन्धनका कारण बन जाता है, तो फिर जो कामना आदिको लेकर अशुभ-कर्म करता है, वह तो पापसे बँधेगा ही ।

तात्पर्य है कि किसीको दुःख देना, तंग करना, मारना आदि मनुष्यका कर्तव्य नहीं है, प्रत्युत अकर्तव्य है । अकर्तव्यमें मनुष्य कामनाको लेकर ही प्रवृत्त होता है (३ । ३७) । अतः मनुष्यको कामना, स्वार्थ आदिका त्याग करके सबके हितके लिये ही उद्योग करते रहना चाहिये ।

प्रश्र‒जिन भूत-प्रेतोंको बोतलमें बंद कर दिया गया है, कीलित कर दिया गया है, वे कबतक वहाँ जकड़े रहते हैं ?

उत्तर‒मन्त्रोंकी शक्तिकी भी एक सीमा होती है, उम्र होती है । उम्र पूरी होनेपर जब मन्त्रोंकी शक्ति समाप्त हो जाती है अथवा प्रेतयोनिकी अवधि (उम्र) पूरी हो जाती है, तब वे भूत-प्रेत वहाँसे छूट जाते हैं । अगर उनकी उम्र बाकी रहनेपर भी कोई अनजानमें कील निकाल दे, जमीनको खोदते समय बोतल फूट जाय, पेड़के गिरनेसे बोतल फूट जाय तो वे भूत-प्रेत वहाँसे छूट जाते हैं और अपने स्वभावके अनुसार पुनः दूसरोंको दुःख देने लग जाते हैं ।     

प्रश्न‒अगर कोई पेडमें गड़ी हुई कीलको निकाल दे, जमीनमें गड़ी हुई बोतलको फोड़ दे तो उसमें बन्द भूत-प्रेत उसको पकड़ेंगे तो नहीं ?

उत्तर‒वहाँसे छूटनेपर भूत-प्रेत उसको पकड़ सकते हैं; अतः हरेक आदमीको ऐसा काम नहीं करना चाहिये । जो भगवान्‌के परायण हैं, जिनको भगवान्‌का सहारा है, हनुमानजीका सहारा है, वे अगर भूत-प्रेतोंको वहाँसे मुक्त कर दें तो भूत-प्रेत उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते, प्रत्युत उनके दर्शनसे उन भूत-प्रेतोंका उद्धार हो जाता है । सन्त-महापुरुषोंने बहुत-से भूत-प्रेतोंका उद्धार किया है ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे