।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ कृष्ण दशमी, वि.सं.२०७३, रविवार
एकादशी-व्रत कल है
उन्नति


(गत ब्लॉगसे आगेका)

पारमार्थिक उन्नति करनेवालेकी लौकिक उन्नति स्वतः होती है ।
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विचार करो‒हम अपनी जानकारीका खुद ही निरादर करेंगे तो फिर हमारी उन्नति कैसे होगी ?
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वास्तविक उन्नति है‒स्वभाव शुद्ध होना ।
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सांसारिक उन्नति वर्तमानकी वस्तु नहीं है और पारमार्थिक उन्नति भविष्यकी वस्तु नहीं है ।
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जो आराम चाहता है, वह अपनी वास्तविक उन्नति नहीं कर सकता ।
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जिस प्रकार आकाशमें वृक्ष कितना ही ऊँचा उठे, उसकी कोई सीमा नहीं है, इसी प्रकार मनुष्यकी उन्नतिकी भी कोई सीमा नहीं है ।
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पारमार्थिक उन्नतिमें संयोगजन्य सुखकी लोलुपता ही खास बाधक है ।
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मनुष्यका उत्थान और पतन भावसे होता है, वस्तु परिस्थिति आदिसे नहीं ।
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बुद्धिके अनुसार मन और मनके अनुसार इन्द्रियाँ होनेसे उत्थान होता है । परन्तु इन्द्रियोंके अनुसार मन और मनके अनुसार बुद्धि बनानेसे पतन होता है ।
एकान्त
शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिसे अपना सम्बन्ध न रखना ही सच्चा एकान्त है ।
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एकान्त मिले या समुदाय मिले, साधकको अपना साधन किसी परिस्थितिके अधीन नहीं मानना चाहिये, प्रत्युत प्राप्त परिस्थितिके अनुसार अपना साधन बनाना चाहिये ।
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एकान्तकी इच्छा करनेवाला परिस्थितिके अधीन होता है । जो परिस्थितिके अधीन होता है, वह भोगी होता है, योगी नहीं ।
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  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘अमृतबिन्दु’ पुस्तकसे