।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७३, बुधवार
कर्तव्य


(गत ब्लॉगसे आगेका)

चारों वर्णों और आश्रमोंमें श्रेष्ठ व्यक्ति वही है, जो अपने कर्तव्यका पालन करता है । जो कर्तव्यच्युत होता है, वह छोटा हो जाता है ।
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संसारके सभी सम्बन्ध अपने कर्तव्यका पालन करनेके लिये ही हैं, न कि अधिकार जमानेके लिये । सुख देनेके लिये हैं, न कि सुख लेनेके लिये ।
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एकमात्र अपने कल्याणका उद्देश्य होगा तो शास्त्र पढ़े बिना भी अपने कर्तव्यका ज्ञान हो जायगा । परन्तु अपने कल्याणका उद्देश्य न हो तो शास्त्र पढ़नेपर भी कर्तव्यका ज्ञान नहीं होगा, उल्टे अज्ञान बढ़ेगा कि हम जानते हैं !
कल्याण
मेरा कुछ नहीं है, मुझे कुछ नहीं चाहिये और मुझे अपने लिये कुछ नहीं करना है‒ये तीन बातें शीघ्र उद्धार करनेवाली हैं ।
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भगवान्‌का संकल्प हमारे कल्याणके लिये है । अगर हम अपना कोई संकल्प न रखें तो भगवान्‌के संकल्पके अनुसार अपने-आप हमारा कल्याण हो जायगा ।
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संसारमें ऐसी कोई भी परिस्थिति नहीं है, जिसमें मनुष्यका कल्याण न हो सकता हो । कारण कि परमात्मा प्रत्येक परिस्थितिमें समानरूपसे विद्यमान हैं ।
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कल्याणकी प्राप्ति बहुत सुगम है, पर कल्याणकी इच्छा ही नहीं हो तो वह सुगमता किस कामकी ?
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संसारका काम तो और कोई भी कर लेगा, पर अपने कल्याणका काम तो खुदको ही करना पडेगा; जैसे‒भोजन और दवाई खुदको ही लेनी पड़ती है ।
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अपने कल्याणके लिये किसी नयी परिस्थितिकी जरूरत नहीं है । प्राप्त परिस्थितिके सदुपयोगसे ही कल्याण हो सकता है ।
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कल्याण क्रियासे नहीं होता, प्रत्युत भाव और विवेकसे होता है ।
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  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘अमृतबिन्दु’ पुस्तकसे