।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.२०७३, शनिवार
बिन्दुमें सिन्धु


देवताओंके शरीरमें भोग भोगनेकी विशेष शक्ति होती है । वह शक्ति मनुष्योंमें नहीं है । देवताओंके शरीर दिव्य होते हैं । मनुष्योंके शरीर दिव्य नहीं होते । जैसे मनुष्यको मैलसे भरे सूअरके शरीरसे दुर्गन्ध आती है, ऐसे ही देवताओंको मनुष्यके शरीरसे दुर्गन्ध आती है । परन्तु भगवत्प्राप्तिका अधिकार मनुष्यशरीरमें ही है । अगर मनुष्यशरीर पाकर भी भगवत्प्राप्ति नहीं की तो मनुष्यशरीरका क्या लाभ हुआ ? मेरा कल्याण हो जाय‒यह इच्छा मनुष्योंमें ही होती है । इसलिये मनुष्योंको विशेषतासे भगवान्‌में लगना चाहिये । मनुष्य भगवान्‌का भजन भी कर सकता है और दूसरोंका उपकार भी कर सकता है ।

जो मनुष्य सच्चे हृदयसे भगवान्‌का भजन करता है, उसके द्वारा दुनियाका बड़ा भारी उपकार होता है । वैसा उपकार कोई धन आदिसे नहीं कर सकता । मैंने देखा है कि श्रीरामचरितमानसके पाठमें जितने लोग आते हैं, उतने सत्संगमें नहीं आते । गोस्वामीजी महाराजको वाणीमें इतना रस है, आनन्द है कि जो पढ़े-लिखे नहीं हैं, रामायणका अर्थ नहीं समझते, वे भी रामायणके पाठसे मस्त हो जाते हैं । गोस्वामी तुलसीदासजी-जैसे सन्तोंके द्वारा आज भी लोगोंका बड़ा उपकार हो रहा है, जो करोड़पति-अरबपति भी नहीं कर सकते ! धनीलोग दूसरोंको अन्न, जल, वस्त्र, मकान आदि दे सकते हैं, पर वे कल्याण नहीं कर सकते ।

विचार करें कि अपना कौन है ? आज प्राण चले जायँ तो अपना कौन रहेगा और अपने साथमें क्या रहेगा ? बिना स्वार्थके अपना हित करनेवाला कौन है ? सिवाय भगवान्‌के कोई अपना नहीं है । हम सब उनके ही अंश हैं । उनके सिवाय आफतमें रक्षा करनेवाला कोई नहीं है । जैसे माँ कृपा करके बालकका पालन करती है, पर बालकके पास ऐसी कोई शक्ति नहीं, जिससे माँकी सहायता कर सके । ऐसे ही भगवान् हम सबकी माँ हैं । हमारे पास ऐसी कोई चीज नहीं है, जिससे भगवान्‌की सहायता कर सकें । माँके बिना बालक बेचैन हो जाता है, रोने लग जाता है तो उससे माँ वशमें हो जाती है । ऐसे ही हम भगवान्‌के लिये व्याकुल हो जायँ तो भगवान् वशमें हो जायँगे । सर्वसमर्थ भगवान्‌के रहते हुए हम दुःख पा रहे हैं; क्योंकि उधर हमारी वृत्ति नहीं है ।

भगवान्‌को याद करनेमात्रसे वे प्रसन्न हो जाते हैं‒अच्युतः स्मृतिमात्रेण’ भगवान्‌से एक ही चीज माँगो कि हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । यह एक मन्त्र है, जिससे भगवान्‌की स्मृति होगी । स्मृति होनेसे आपमें शान्ति, आनन्द, दया, क्षमा, उदारता आदिका ठिकाना नहीं रहेगा । सम्पूर्ण दुःखोंका अत्यन्त अभाव हो जायगा । केवल उनको हर समय याद रखो । आपका हित करनेवाला संसारमें इतना सस्ता कौन है ?

ऐसो को उदार जग माहीं ।
बिनु सेवा जो द्रवै दीनपर राम सरिस कोउ नाहीं ॥
                                     (विनयपत्रिका १६२)

भगवान्‌को याद रखनेमात्रसे सब ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ पासमें आ जाती हैं । भगवान्‌का भजन करनेवाले भक्तमें भगवान्‌की सब शक्ति उतर आती है ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे