।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७३, सोमवार
बिन्दुमें सिन्धु


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोता‒महाभारत ग्रन्थको घरमें रखना अथवा पढ़ना चाहिये या नहीं ?

स्वामीजी‒कोई हर्ज नहीं है । सेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाने घरमें ही महाभारतको पढ़ा है, संक्षिप्त किया है और प्रेसमें छपवाया है । यह मेरे सामनेकी बात है । इससे कोई हानि नहीं होती । अमावस्या, पूर्णिमा आदिके दिन महाभारतको पढ़नेका माहात्म्य बताया गया है । आपको वहम हो तो पहले शान्तिपर्व और अनुशासनपर्व पढ़ो, फिर शुरूसे महाभारत पढ़ो ।[1]

जैसे हम प्यासे मर रहे हैं और गंगाजी भी पासमें है, पर हम गंगाजीतक जायँ ही नहीं, उसका जल पीयें ही नहीं तो गंगाजी क्या करे ? ऐसे ही अनेक विलक्षण महात्मा हुए हैं, भगवान्‌के अनेक अवतार हुए हैं, पर हमारी मुक्ति नहीं हुई तो इसका कारण यह था कि हमने चेत नहीं किया । इसलिये अपना उद्धार करनेके लिये आपको चेत करनेकी आवश्यकता है । संसारके पदार्थ प्रारब्धसे मिलते हैं, पर परमात्माकी प्राप्ति नया काम है, जिसको आप कर सकते हैं । यह काम अपने-आप होनेवाला नहीं है, प्रत्युत लगनसे होनेवाला है । लगन नहीं होगी तो अच्छे महात्मा मिलनेपर भी आप लाभ नहीं ले सकोगे । यदि एक दिन भी आप सावधान होकर भगवान्‌में मन लगाओ तो वह दिन वर्षभरमें आपको अलग दीखेगा !

अभी सत्संग मिला है तो इससे लाभ ले लो । ऐसा मत सोचो कि यह अवसर सदा रहेगा । जैसे सावनमें हरी-हरी घास होती है तो गधा समझता है कि यह सदा रहेगी, पर यह सदा नहीं रहेगी, ऐसे ही सत्संगका यह मौका सदा नहीं रहेगा ।

मौका चूक जाय तो फिर नहीं मिलता । इसलिये मौका मिल जाय तो जल्दी लाभ ले लो । लोग रुपयोंसे लाभ समझते हैं, पर रुपयोंसे लाभ नहीं होता, रुपयोंको सेवामें लगानेसे लाभ होता है । आपके पास रुपये हैं तो उनके द्वारा सेवा करके लाभ ले लो । दुःखी मिले तो सेवा करके लाभ ले लो । सत्संग मिले तो सत्संग करके लाभ ले लो । नींद आये तो सो जाओ, नींद न आये तो भजन करो । रातमें नींद खुल जाय तो भजन करनेमें लग जाओ, अच्छी पुस्तकें पढ़नेमें लग जाओ । इस तरह हरदम सावधान रहो; ‘हे नाथ ! हे नाथ !! पुकारो । हरदम भगवान्‌से कहते रहो कि हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं । आप लाभ उठाओ तो आपके द्वारा दूसरोंको भी लाभ होगा । जैसे सिगरेट पीनेवाला कइयोंको सिगरेट पीना सिखा देता है, ऐसे ही भजन करनेवाला कइयोंको भजनमें लगा देता है ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे



[1] शालग्रामशिला यस्य गृहे तिष्ठति मानद ।
   अथवा भारतं गेहे न  तं वै बाधते कलिः ॥
                                (स्कन्दपुराण, वैष्णव वैशाख २२ । ९६)

मानद ! जिसके घरमें शालग्राम शिला अथवा महाभारतकी पुस्तक हो, उसे कलियुग बाधा नहीं दे सकता ।’