।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल सप्तमी, वि.सं.२०७३, गुरुवार
गीतामें फलसहित विविध उपासनाओंका वर्णन


  (गत ब्लॉगसे आगेका)

(६) प्रेतसे उसका नाम आदि पूछकर किसी शुद्ध-पवित्र ब्राह्मणके द्वारा सांगोपांग विधि-विधानसे गया- श्राद्ध कराना चाहिये ।

(७) प्रेतबाधावाले व्यक्तिके पास गीता, रामायण भागवत रख दे और उसको विष्णुसहस्रनाम’ का पाठ सुनाता रहे ।

(८) जिस स्थानपर श्रद्धापूर्वक सांगोपांग विधिसे गायत्रीमन्त्रका पुरश्चरण, वेदोंका सस्वर पाठ, पुराणोंकी कथा हुई हो, वहाँ प्रेतबाधावाले व्यक्तिको ले जाना चाहिये । वहाँ जाते ही प्रेत शरीरसे बाहर निकल जाता है, क्योंकि भूत-प्रेत पवित्र स्थानोंमें नहीं जा सकते । प्रेतबाधा वाले व्यक्तिको कुछ दिन वहीं रहकर भगवन्नामका जप, हनुमानचालीसाका पाठ, सुन्दरकाण्डका पाठ आदि करते रहना चाहिये. जिससे वह प्रेत पुनः प्रविष्ट न हो । अगर ऐसा नहीं करेंगे तो वह प्रेत बाहर ही घूमता रहेगा और उस व्यक्तिके बाहर आते ही उसको फिर पकड़ लेगा ।

(९) सोलह कोष्ठकका चौंतीसा यन्त्नसिद्ध कर ले[*] । फिर मंगलवार या शनिवारके दिन अग्निमें खोपरा, घी, जौ, तिल और सुगन्धित द्रव्योंकी १०८ आहुतियाँ दे । प्रत्येक आहुति ‘स्थाने हषीकेश...... (११ । ३६) इस श्लोकसे डाले और प्रत्येक आहुतिके बाद चौंतीसा यन्त्नको अग्निपर घुमाये । इसके बाद उस यत्नको ताबीजमें डालकर प्रेतबाधावाले व्यक्तिके गलेमें लाल या काले धागेसे पहना दे ।

श्रद्धा-विश्वासपूर्वक कोई एक उपाय करनेसे प्रेतबाधा दूर हो सकती है । इस तरहके अनुष्ठानोंमें प्रारब्धके बलाबलका भी प्रभाव पड़ता है । अगर प्रारब्धकी अपेक्षा अनुष्ठान बलवान् हो तो पूरा लाभ होता है अर्थात् कार्य सिद्ध हो जाता हैं, परन्तु अनुष्ठानकी अपेक्षा प्रारब्ध बलवान् हो तो थोड़ा ही लाभ होता है, पूरा लाभ नहीं होता ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे


[*] चौंतीसा यन्त्र और उसको लिखनेकी तथा सिद्ध करनेकी विधि इस प्रकार है‒

९     १६    ५     ४
      २    ११   १४
                      १२   १३    ८      १
 ६     ३    १०    १५

इस यन्त्रको सफेद कागज या भोजपत्रपर अनारकी कलमसे अष्टगन्ध (सफेद चन्दन, लाल चन्दन, केसर, कुंकुंम, कपूर, कस्तूरी, अगर एवं तगर) के द्वारा लिखना चाहिये । इस यन्त्रमें एकसे लेकर सोलहतक अंक आये हैं; न तो कोई अंक छूटा है और न ही कोई अंक दो बार आया है । यन्त्र लिखते समय भी क्रमसे ही अंक लिखने चाहिये; जैसे‒पहले १ लिखे, फिर २ लिखे, फिर ३ आदि ।

इस चौंतीसा यन्त्रको सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण या दीपावलीकी रात्रिको एक सौ आठ बार लिखनेसे यह सिद्ध हो जाता है । शीघ्र सिद्ध करना हो तो शनिवारके दिन धोबीघटपर बैठकर उपर्युक्त प्रकारसे एक-एक यन्त्र लिखकर धोबीकी पानीसे भरी नाँदमें डालता जाय । इस तरह एक सौ आठ यन्त्र नाँदमें डालनेके बाद उन सभी यन्त्रोंको नाँदमेसे निकालकर बहते हुए जलमें बहा दे । ऐसा करनेसे यन्त्र सिद्ध हो जाता है । यन्त्र सिद्ध करनेके बाद भी प्रत्येक ग्रहणके समय और दीपावली-होलीकी रात्रिमें यह यन्त्र एक सौ आठ या चौतीस बार लिखकर नदीमें बहा देना चाहिये । [ इस यन्त्रको चौंतीसा यन्त्रइसलिये कहा गया है कि उसको ६४ प्रकारसे गिननेपर कुल संख्या ३४ आती है । यहाँ चौंतीसा यन्त्रका एक प्रकार दिया गया है । इस यन्त्रको ३८४ प्रकारसे बनाया जा सकता है ।]