।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
पौष शुक्ल द्वादशी, वि.सं.२०७३, सोमवार
गर्भपात महापाप क्यों ?


(गत ब्लॉगसे आगेका)

सन्तानके लिये तो माता-पिता ईश्वरके समान हैं‒‘मातृदेवो भव, पितृदेवो भव’ । यदि वे अपनी सन्तानका जन्मसे पहले ही नाश कर देंगे तो फिर रक्षा कौन करेगा ?

साधुलोग चातुर्मासमें एक ही जगह इस कारण रहते हैं कि स्थावर पेड़-पौधोंके अंकुर यात्रा करते समय पैरोंके नीचे आकर नष्ट न हो जायँ । जब स्थावर प्राणियोंकी भी हिंसाका इतना पाप माना जाता है, फिर जो जंगम प्राणी हैं, उनकी हिंसाका कितना पाप है ? जंगम प्राणियोंमें भी मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है । उस मनुष्यकी गर्भमें ही हत्या कर देना कितना महान् पाप है ? इससे बढ़कर दूसरा कोई पाप नहीं है !

गर्भमें आया जीव जन्म लेनेके बाद न जाने कितने अच्छे-अच्छे लौकिक और पारमार्थिक काम करता, समाजकी और देशकी सेवा करता, अनेक लोगोंकी सहायता करता, सन्त-महात्मा बनकर अनेक लोगोंको सन्मार्गमें लगाता, अपना तथा औरोंका कल्याण करता, खेती करता, अनेक कारखाने खोलता आदि-आदि । परन्तु जन्म लेनेसे पहले ही उसकी हत्या कर देना कितना महान् पाप है ! क्या हम जानते हैं कि गर्भमें आया जीव कौन है ? कैसा है ? अगर महात्मा गाँधी, लोकमान्य तिलक, स्वामी विवेकानन्द आदिका जन्मसे पहले ही गर्भपात कर दिया गया होता तो देशकी कितनी क्षति हुई होती !

जिसको जीवित नहीं कर सकते, उसको मारनेका अधिकार कैसे हो सकता है ? जीवमात्रको जीनेका अधिकार है । उसको गर्भमें ही नष्ट करके उसके अधिकारको छीनना महान् पाप है । मनुष्यको दूसरोंकी सेवा करने, उसको सुख पहुँचानेका अधिकार है, किसीका नाश करनेका कभी अधिकार नहीं है । अगर गर्भपातकी प्रथा चल पड़ेगी तो फिर मनुष्य राक्षसोंसे भी बहुत नीचे हो जायँगे ! रावण और हिरण्यकशिपुके राज्यमें भी गर्भपात-जैसा महापाप नहीं हुआ ।

शास्त्रोंमें जगह-जगह गर्भपातको महापाप माना गया है । पाराशरस्मृतिमें तो इसको ब्रह्महत्यारूपी महापापसे भी दुगुना पाप बताया गया है‒

यत्यापं    ब्रह्महत्याया    द्विगुणं     गर्भपातने ।
प्रायश्रित्तं न तस्यास्ति तस्यास्त्यागो विधीयते ॥
                                                                             (४ । २०)

‘ब्रह्महत्यासे जो पाप लगता है, उससे दुगुना पाप गर्भपात करनेसे लगता है । इस गर्भपातरूपी महापापका कोई प्रायश्चित्त भी नहीं है, इसमें तो उस स्त्रीका त्याग कर देनेका ही विधान है ।’

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)  
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे