।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल पंचमी, वि.सं.२०७३, बुधवार
बिन्दुमें सिन्धु


(गत ब्लॉगसे आगेका)

भगवान्‌को याद करो । भगवान्‌को याद करना सम्पूर्ण दोषोंके नाशका उपाय है । राग-द्वेष हो जायँ तो आर्त होकर हे नाथ ! हे मेरे नाथ !पुकारों । जैसे डाकू लूटते हों तो आदमी पुकारता है, ऐसे आर्त होकर भगवान्‌को पुकारो । ऐसा करनेसे जरूर फर्क पड़ेगा । भगवान्‌से कहनेपर हरेक दोष दूर होता है ।

राग-द्वेषसे बड़ी हानि होती है ! जब राग होता है, तब द्वेष पैदा हो जाता है । नाशवान् पदार्थोंमें राग होनेसे अविनाशी (भगवान्)-के साथ द्वेष हो जाता है, पर साधकको इसका पता नहीं लगता । जब भोग अच्छे लगते हैं, तब भगवान् अच्छे नहीं लगते । अतः थोड़ा भी राग उत्पन्न हो तो हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’ पुकारो । अवगुणोंका नाश करनेके लिये और सद्‌गुणोंको लानेके लिये‒दोनोंके लिये भगवान्‌को पुकारो । उनकी कृपासे ही अवगुणोंका नाश और सद्‌गुणोंकी रक्षा होती है । चलते-फिरते, उठते-बैठते हरदम हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’ पुकारते रहो तो भगवान् सब तरहसे रक्षा करेंगे । जब अपने उद्योगसे राग-द्वेष दूर न हों, तब दुःखी होकर भगवान्‌को पुकारो । भगवान्‌की कृपासे बड़ी सरलतासे सब काम हो जायगा ।

मैं राग-द्वेषको जीत सकता हूँ‒ऐसा अभिमान जिसके भीतर होता है, वह भगवान्‌का सहारा नहीं ले सकता । जबतक मनुष्य अपना बल समझता है, तबतक वह परास्त होता रहता है । गोस्वामीजी महाराज लिखते हैं‒

हौं हारी करि जतन बिबिध बिधि अतिसै प्रबल अजै ।
तुलसिदास बस होइ  तबहिं  जब  प्रेरक  प्रभु  बरजै ॥
                                           (विनयपत्रिका ८९ । ४)

अतः पहले अपना बल लगाकर इन दोषोंको दूर करो । जब दूर नहीं हों, तब निर्बल होकर भगवान्‌को हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’ पुकारो । इसके समान दूसरा कोई उपाय नहीं है । पर अपनेमें बलका अभिमान नहीं होना चाहिये । अपने बलका अभिमान होगा तो सच्ची प्रार्थना कर सकोगे नहीं, देरी लगेगी । अपनेमें बल, बुद्धि, विद्या, साधन, वर्ण, आश्रम आदिका अभिमान होगा तो यह उपाय काम नहीं देगा ।


भगवान्‌को पुकारनेमें हार स्वीकार मत करो, भले ही वर्ष लग जायँ । अन्तमें आपकी विजय जरूर होगी, इसमें सन्देह नहीं है । अपना समझकर भगवान्‌को पुकारो । नकली प्रार्थनाको भी भगवान् असली मानकर स्वीकार कर लेते हैं । अपने बलसे निराश और भगवान्‌के बलपर विश्वास‒ये दो बातें होंगी तो जरूर सफलता मिलेगी ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे