।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
गीतामें भगवान्‌का विविध रूपोंमें प्रकट होना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

यह सम्पूर्ण संसार सूतके धागेमें पिरोयी हुई सूतकी मणियोंकी तरह मेरेमें ओतप्रोत है; सम्पूर्ण प्राणियोंका सनातन बीज भी मैं ही हूँ; ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ-रूपसे भी मैं ही हूँ‒इस प्रकार ‘वासुदेवः सर्वम’ का बोध करानेके लिये भगवान् सातवें अध्यायमें अर्जुनके सामने ‘समग्र’‒रूपसे प्रकट होते हैं (७ । २९-३०) ।

सगुण-निराकार और निर्गुण-निराकारके ध्यानमें योगबलकी आवश्यकता होनेसे उन दोनोंके ध्यानमें कठिनता है; परंतु मैं अपने अनन्य भक्तोंको सुलभतासे प्राप्त हो जाता हूँ‒यह बात बतानेके लिये भगवान् आठवें अध्यायमें अर्जुनके सामने ‘सुलभ’‒रूपसे प्रकट होते हैं (८ । १४) ।

इस संसारका माता पिता, धाता, पितामह, गति, भर्ता, निवास, बीज आदि मैं ही हूँ अर्थात् कार्य-कारण, सत्-असत्, नित्य आदि सब कुछ मैं ही हूँ‒यह बात बतानेके लिये भगवान् नवें अध्यायमें अर्जुनके सामने ‘सत्-असत्’‒रूपसे प्रकट होते है (९ । १९) ।

सम्पूर्ण प्राणियोंके आदि, मध्य और अन्तमें मै ही हूँ; सर्गोके आदि, मध्य और अन्तमें मैं ही हूँ सम्पूर्ण प्राणियोंका बीज मैं ही हूँ; साधकको जहाँ-कहीं सुन्दरता, महत्ता, अलौकिकता दीखे, वह सब वास्तवमें मेरी ही है‒यह बात बतानेके लिये भगवान् दसवें अध्यायमें अर्जुनके सामने ‘सर्वैश्वर्य’रूपसे प्रकट होते है (१० । ४१-४२) ।

मैं अपने किसी एक अंशसे सम्पूर्ण संसारको व्याप्त करके स्थित हूँ‒इसे बतानेके लिये भगवान् ग्यारहवें अध्यायमें अर्जुनको दिव्यचक्षु देकर उनके सामने ‘विश्वरूप’ से प्रकट होते हैं (११ । ५‒८) ।

जो भक्त मेरे परायण होकर, सम्पूर्ण कर्मोंको मेरेमें अर्पण करके अनन्य भक्तियोगसे मुझ सगुण-साकार परमेश्वरका ध्यान करते हुए मेरी उपासना करते हैं उनका मैं शीघ्र ही मृत्युरूप संसार-समुद्रसे उद्धार करनेवाला बन जाता हूँ‒इसे बतानेके लिये भगवान् बारहवें अध्यायमें अर्जुनके सामने ‘समुद्धर्ता’रूपसे प्रकट होते हैं (१२ । ७) ।


 जाननेके लिये जितने विषय हैं, उन सबमें अवश्य जाननेयोग्य तो एक परमात्मतत्त्व ही है । इस परमात्मतत्त्वके सिवा दूसरे जितने भी जाननेयोग्य विषय हैं । उन्हें मनुष्य कितना ही जान ले, पर उससे पूर्णता नहीं होगी । अगर वह परमात्मतत्त्वको जान ले तो फिर अपूर्णता रहेगी ही नहीं‒यह बात जनानेके लिये भगवान् तेरहवें अध्यायमें अर्जुनके सामने ‘ज्ञेयतत्त्व’रूपसे प्रकट होते हैं (१३ । १२‒१८) ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे