।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन कृष्ण षष्ठी, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
सर्वश्रेष्ठ हिन्दूधर्म और उसके ह्रासका कारण



(गत ब्लॉगसे आगेका)

प्राणिमात्रके कल्याणके लिये जितना गहरा विचार हिन्दूधर्ममें किया गया है, उतना और किसी धर्ममें नहीं मिलता । हिन्दूधर्मके सभी सिद्धान्त पूर्णतया वैज्ञानिक और कल्याण करनेवाले हैं । अतः हिन्दूधर्म सर्वश्रेष्ठ है ।

हिन्दुओंकी वृद्धि आवश्यक क्यों ?

हिन्दूधर्ममें मुक्ति, तत्त्वज्ञान, कल्याण, परमशान्ति, परमात्मतत्त्वकी प्राप्ति जितनी सुगमतासे बतायी गयी है, उतनी सुगमतासे प्राप्तिकी बात ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध, यहूदी, पारसी आदि किसी भी धर्ममें नहीं सुनी गयी है । इसलिये मैं चाहता हूँ कि हिन्दुओंकी वृद्धि हो । कारण कि हिन्दूधर्मके अलौकिक, विलक्षण कथोंकी बातोंको हिन्दुओंके सिवाय और कौन सुनेगा और उनका आदर करेगा ? मुसलमानोंने तो हिन्दूधर्मके असंख्य अच्छे-अच्छे ग्रन्थोंको जला डाला । इसलिये आज वेदोंकी पूरी संहिता नहीं मिलती, सभी शास्त्र नहीं मिलते । इस कारण कितनी विलक्षण-विलक्षण विद्याएँ नष्ट हो गयीं, कला-कौशल नष्ट हो गये, जिनसे केवल हिन्दुओंको ही नहीं, संसारमात्रको लाभ पहुँचता । अब मुसलमानोंकी संख्या बढ़ रही है और हिन्दुओंकी संख्या घट रही है तो आगे चलकर क्या दशा होगी ? हिन्दुओंमें कोई-न-कोई तो हिन्दूधर्मके ग्रन्थोंको पढ़ेगा, पर जो हिन्दुओंके ग्रन्थोंको जला-जलाकर हमामका पानी गरम करते रहे, उन मुसलमानोंसे क्या ये आशा रखें कि वे हिन्दुओंके ग्रन्थोंको पढ़ेंगे ? जो हिन्दुओंका धर्म-परिवर्तन करके उनको मुसलमान या ईसाई बनानेमें लगे हुए हैं, उनसे क्या यह आशा की जाय कि वे हिन्दुओंके ग्रन्थोंका आदर करेंगे ? असम्भव है । इसी दृष्टिसे मैं हिन्दुओंमें परिवार-नियोजनका विरोध किया करता हूँ । वास्तवमें मेरा यह उद्देश्य बिलकुल नहीं है कि हिन्दुओंकी संख्या बढ़ जाय, जिससे उनको राज्य मिल जाय । मेरा उद्देश्य यह है कि मनुष्यका जल्दी और सुगमतासे कल्याण हो जाय । मैं कल्याणका पक्षपाती हूँ, राज्यका पक्षपाती नहीं ।

मेरे मनमें मुसलमानोंके प्रति किंचिन्मात्र भी द्वेष नहीं है । परन्तु वे हिन्दुओंका नाश करना चाहते हैं, इसलिये उनकी क्रिया मेरेको अच्छी नहीं लगती । कोई मेरेसे वैर, द्वेष रखनेवाला हो, मेरा बुरा करनेवाला हो, वह भी अगर मेरेसे अपने कल्याणकी बात पूछे तो मैं उसको वैसे ही बड़े प्रेमसे कल्याणका उपाय बताऊँगा, जैसे मैं अपनेमें श्रद्धा-प्रेम रखनेवालेको बताया करता हूँ । अगर कोई मुसलमान हृदयसे अपने कल्याणका उपाय पूछे तो मैं सबसे पहले उसको बताऊँगा, पीछे हिन्दूको बताऊँगा । मेरा कभी किसीसे भेदभाव रखनेका विचार है ही नहीं ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आवश्यक चेतावनी’ पुस्तकसे