।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन कृष्ण सप्तमी, वि.सं.२०७३, शनिवार
सर्वश्रेष्ठ हिन्दूधर्म और उसके ह्रासका कारण



(गत ब्लॉगसे आगेका)

जीवमात्र परमात्माका अंश है । अतः मेरा जो स्वरूप है, वही-का-वही स्वरूप मुसलमानोंका भी है । जैसे मेरा स्वरूप परमात्माका अंश है, ऐसे ही मुसलमानोंका स्वरूप भी परमात्माका अंश है । अगर मैं उनसे वैर करता हूँ तो वास्तवमें अपने स्वरूपसे तथा अपने इष्टसे वैर करता हूँ । कारण कि जो दूसरे सम्प्रदायकी निन्दा करते हैं, वे वास्तवमें अपने सिद्धान्तका अपमान करते हैं । जैसे‒कोई विष्णुका भक्त है और वह शंकरकी निन्दा करता है तो वह समझता है कि विष्णुकी महिमा बढ़ा रहा हूँ और मेरा विष्णुमें अनन्यभाव है । परन्तु वास्तवमें शंकरकी निन्दा करनेसे यह सिद्ध होता है कि शंकर और शंकरके भक्तोंमें विष्णु नहीं है । अतः दूसरेके इष्टदेवकी निन्दा करनेवाला वास्तवमें अपनी ही हानि करता है, अपने ही इष्टदेवको कमजोर सिद्ध करता है । ऐसे ही अगर मैं मुसलमानोंकी निन्दा करूँगा तो उनमें मेरा परमात्मा नहीं है‒यह सिद्ध होगा । इसलिये मुसलमान मेरे निजस्वरूप, आत्मस्वरूप, अभिन्नस्वरूप हैं । परन्तु मुसलमान हिन्दुओंकी हत्या करते हैं, उनकी स्त्रियोंका अपहरण करते हैं, उनके ग्रन्थोंको जलाते हैं, उनके मन्दिरोंको तोड़ते हैं, उनकी गायोंकी हत्या करते हैं‒सब प्रकारसे हिन्दुओंका नाश-ही-नाश करते हैं, यह क्रिया मुझे बहुत बुरी लगती है ।

जब देशमें मुसलमानोंका राज्य हुआ, तब उन्होंने कितने हिन्दुओंको मारा, कितनी स्त्रियोंका अपहरण किया, कितने मन्दिरोंको तोड़ा, हिन्दुओंपर कितना अत्याचार किया‒इसका कोई पारावार नहीं है ! चित्तौड़में मुसलमानोंने इतने हिन्दुओंकी हत्या की थी कि केवल उनके जनेऊ साढ़े चौहत्तर मन इकट्ठे हुए थे ! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य तो जनेऊ धारण करते हैं, पर शूद्र आदि जनेऊ धारण नहीं करते । ऐसी स्थितिमें कितने हिन्दू मारे गये, इसकी कोई गणना नहीं ! लोग अबतक चिट्ठियोंपर साढ़े चौहत्तरका अंक ७४॥ ‒इस प्रकार लिखा करते थे, जिसका अभिप्राय यह होता था कि अन्य कोई व्यक्ति इस चिट्ठीको खोलकर पड़ेगा तो उसको चित्तौड़के नरसंहारका पाप लगेगा । विचार करें, अगर देशमें पुनः मुसलमानोंकी बहुलता हो गयी और उनका राज्य हो गया तो फिर क्या दशा होगी ? वोट-प्रणालीमें जिसकी संख्या अधिक होती है, उसीकी विजय होती है, उसीका राज्य होता है । इसलिये देशमें हिन्दुओंकी वृद्धि अत्यन्त आवश्यक है । इसमें केवल हिन्दुओंका ही नहीं, प्रत्युत सभी धर्मोंके लोगोंका हित निहित है; क्योंकि हिन्दूधर्म प्राणिमात्रका हित चाहता है । हिन्दू ही ‘विश्व-कल्याण-यज्ञ’ के आयोजन करता है । ‘विश्वका कल्याण हो’‒यह नारा भी हिन्दू ही लगाता है । घर-घरमें ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ॥’‒ऐसी प्रार्थना भी हिन्दू ही करता है । ‘वासुदेवः सर्वम्’, ‘सब जग ईश्वररूप है’‒ऐसी शिक्षा भी हिन्दू ही देता है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आवश्यक चेतावनी’ पुस्तकसे