।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७३, रविवार
सर्वश्रेष्ठ हिन्दूधर्म और उसके ह्रासका कारण


(गत ब्लॉगसे आगेका)

हिन्दुओंके ह्रासका मुख्य कारण

पिछली जनगणनाके परिणामके अनुसार सन् १९८१-१९९१ के बीच भारतमें मुसलमानोंकी जनसंख्या ३२.७६ प्रतिशत और हिन्दुओंकी जनसंख्या २२.७८ प्रतिशत बढ़ी है । इस बातसे देशका हित चाहनेवाली हिन्दू-संस्थाओंका चिन्तित होना स्वाभाविक है । उन संस्थाओंका विचार है कि देशमें मुसलमानोंकी संख्यामें वृद्धि होनेका मुख्य कारण ‘धर्मान्तरण’ है अर्थात् प्रतिवर्ष बहुत बड़ी संख्यामें हिन्दू लोभवश अपना धर्म छोड़कर मुसलमान बन जाते हैं, जिससे मुसलमानोंकी संख्या बढ़ रही है । अतः धर्माचार्योंको, साधु-सन्तोंको यथासम्भव धर्मान्तरण रोकनेका और धर्मान्तरित हुए हिन्दुओंको वापिस हिन्दूधर्ममें लानेका प्रयत्न करना चाहिये । परन्तु वास्तविक बात दूसरी ही है ! हिन्दुओंकी संख्या कम होनेका मुख्य कारण ‘परिवार-नियोजन’ है । इस तरफ हिन्दू-संस्थाओंकी दृष्टि नहीं जाती तो यह बड़े आश्चर्य एवं खेदकी बात है !

परिवार-नियोजन अधिकतर हिन्दू ही करते हैं और यह हिन्दुओंपर ही जबर्दस्ती लागू किया जाता है । दूसरी बात, कानूनकी दृष्टिसे हिन्दू एकसे अधिक विवाह नहीं कर सकता, जब कि मुसलमानोंको चार विवाह करनेकी छूट है । इसलिये हिन्दू तो कहते हैं‒‘हम दो, हमारे दो’, पर मुसलमान कहते हैं‒‘हम पाँच, हमारे पचीस’ ! जो ईसाई या मुसलमान राज्य पानेके लोभसे अपनी संख्या बढ़ानेमें लगे हुए हैं और इसके लिये हिन्दुओंका धर्म-परिवर्तन भी कर रहे हैं, उनसे क्या यह आशा रखी जा सकती है कि वे परिवार-नियोजनके द्वारा अपनी जनसंख्या बढ़नेसे रोकेंगे ?

परम्परासे मैंने एक बात सुनी है कि कुछ समय पहले दिल्लीकी एक मस्जिदमें मुसलमानोंकी सभा हुई । उसमें एक मुस्लिम नेताने कहा कि मुसलमानोंको अधिक बच्चे पैदा करने चाहिये । यह सुनकर एक मुसलमान बोला कि हम गरीब हैं, अधिक बच्चोंका पालन कैसे करेंगे ? तो उस नेताने उत्तर दिया कि अभी आपलोग थोड़ा कष्ट सह लो, पीछे हिन्दुओंकी सम्पत्ति हमारी ही तो होगी ! उसके कथनका अभिप्राय यह था कि गरीब हिन्दुओंको तो हम युक्तिसे मुसलमान बना लेंगे और धनी हिन्दू परिवार-नियोजन करके धीरे-धीरे अपने-आप खत्म हो जायँगे । आजकल वोटका जमाना है । जिसकी संख्या अधिक होगी, उसीका राज्य होगा ।

मैं लगभग उन्तीस-तीस वर्षोंसे परिवार-नियोजनके विरुद्ध बोल रहा हूँ । परन्तु अभीतक हिन्दू-संस्थाओंने इस विषयपर थोड़ा भी गम्भीरतापूर्वक विचार नहीं किया अथवा उनको मेरी बात जँची ही नहीं ! परिवार-नियोजनके द्वारा परिश्रम करके, समय खर्च करके, रुपये खर्च करके, तरह-तरहके उपायोंके द्वारा लाखों-करोड़ोंकी संख्यामें हिन्दुओंको पैदा होनेसे रोका जा रहा है । परन्तु इस तरफ ध्यान न देकर हिन्दुओंकी कम होती जनसंख्या और मुसलमानोंकी बढ़ती जनसंख्या पर चिन्ता प्रकट की जा रही है‒यह आश्चर्यकी बात है । अगर हिन्दुओंकी घटती जन्मदर (अल्पमत) चिन्ताका विषय है, तो फिर परिवार-नियोजनके द्वारा घरमें खुली हिन्दुओंकी खानको बन्द करनेकी चेष्टा क्यों की जा रही है ? अगर परिवार-नियोजन (कम जनसंख्या) अभीष्ट है तो फिर धर्मान्तरित लोगोंको पुनः हिन्दू बनाकर हिन्दुओंकी जनसंख्या बढ़ानेका परिश्रम क्यों किया जा रहा है ?
 

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आवश्यक चेतावनी’ पुस्तकसे