।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल षष्ठी, वि.सं.२०७३, गुरुवार
बिन्दुमें सिन्धु


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोता‒ऐसा सुना है कि गुरुके बिना कल्याण नहीं होता, इसलिये आप गुरुके विषयमें बतायें ।

स्वामीजी‒गुरुके बिना मुक्ति नहीं होती, यह एकदम सच्ची बात है । परन्तु सच्चा गुरु अथवा सन्त वह होता है, जो अपना कल्याण कर चुका है और जिसके भीतर दूसरेके कल्याणके सिवाय दूसरी कोई इच्छा नहीं है, जिसमें अपने स्वार्थकी गन्ध भी नहीं है, जो स्वप्नमें भी हमारेसे कोई चाहना नहीं रखता, जिसका संसारसे कुछ लेना-देना नहीं है, सिवाय उद्धारके संसारसे कोई मतलब नहीं है । परन्तु ऐसा गुरु बहुत दुर्लभ है ।

गुरवो बहवः सन्ति शिष्यवित्तापहारकाः ।
तमेक दुर्लभं मन्ये    शिष्यहृत्तापहारकम् ॥

शिष्यके धनका हरण करनेवाले गुरु तो बहुत हैं, पर शिष्यके हृदयका ताप हरण करनेवाले गुरु दुर्लभ हैं ।’

गुरुकी जितनी महिमा की जाय, उतनी थोड़ी है । पर यह सच्चे गुरुकी महिमा है, नकली गुरुकी नहीं । नकली गुरु धोखा देता है । रामायणमें आपने कपटी मुनि और कालनेमिकी कथा पढ़ी ही है ।

भोग भोगनेकी इच्छा और रुपयोंका संग्रह करनेकी इच्छा‒इन दो इच्छाओंसे मनुष्यका पतन होता है । ऐसे मनुष्यको परमात्माकी प्राप्ति नहीं हो सकती । उनका संसारमें भी अच्छा यश नहीं होता । परन्तु आज केवल रुपयोंके लिये ही बातें बनाते हैं, सत्संग सुनाते हैं ! गुरु बनानेसे कल्याण हो जायगा‒यह बात मुझे जँचती नहीं । शरणानन्दजी महाराजकी पुस्तकोंमें दो-तीन जगह यह बात आयी है कि गुरु मिल जायगा तो आपको बड़ी मुश्किल हो जायगी ! उसमें आप फँस जाओगे । फिर निकलना मुश्किल हो जायगा ! इसलिये अच्छी बातें सुनो, उनको काममें लाओ, पर जहाँतक बने, गुरु मत बनाओ । आपका चेला है रुपया और रुपयेका चेला है गुरु, तो वह गुरु आपका पोता-चेला हुआ, फिर वह आपका कल्याण कैसे करेगा ? रुपयेकी चाहनावाला कल्याण नहीं कर सकता । आपके मनमें दया आये, प्रेम आये तो उसको रुपया दे दो, पर गुरु मत बनाओ । गुरुके विषयमें जैसी मेरी धारणा है, वैसी बात मैंने क्या गुरु बिना मुक्ति नहीं ?’‒इस पुस्तकमें लिखी है । उसको आप पढ़ें ।

खास बात है‒भगवान्‌को अपना समझना । भगवान्‌के समान हमारा हित करनेवाला दूसरा कोई नहीं है‒
उमा राम सम हित जग माहीं ।
गुरु पितु मातु  बंधु प्रभु नाहीं ॥
                         (मानस, किष्किन्धा १२ । १)

भगवान्‌में स्वार्थकी गन्ध भी नहीं है । स्वार्थका त्यागी आदमी ही दूसरेका हित कर सकता है ।


दो बातें सभी भाई-बहनोंके लिये बड़े कामकी हैं‒दीन-दुःखी, अपाहिज, अरक्षित, दरिद्र आदिको सुख पहुँचाओ और भगवान्‌का नाम लो, उनको याद करो । भीतरसे बार-बार पुकारो‒‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । यह इतनी बढ़िया चीज है, जो आपका उद्धार कर देगी ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे