।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन कृष्ण नवमी, वि.सं.२०७३, सोमवार
सर्वश्रेष्ठ हिन्दूधर्म और उसके ह्रासका कारण


(गत ब्लॉगसे आगेका)

धर्मान्तरित हिन्दुओंको पुनः हिन्दूधर्ममें लानेमें अनेक कठिनाइयोंका सामना करना पड़ता है, परिश्रम करना पड़ता है, खर्चेके लिये बहुत रुपयोंकी व्यवस्था करनी पड़ती है, बहुत समय लगाना पड़ता है । धर्मान्तरित लोग वापिस हिन्दू बन भी जायँ तो उनसे हिन्दुओंको कोई विशेष लाभ नहीं होता । कारण कि जिनका अन्तःकरण इतना अशुद्ध है कि अपने सुखभोग, स्वार्थके लिये अपने धर्मका भी त्याग कर देते हैं, वे यदि वापिस हिन्दूधर्ममें आ भी जायें तो क्या निहाल करेंगे ? परन्तु जो हिन्दू जन्म ले रहे हैं, उनको न रोकनेमें कोई कठिनता नहीं, कोई परिश्रम नहीं, कोई खर्चा नहीं । धर्मान्तरण रोकनेके लिये जो धन खर्च किया जाता है, वह धन हिन्दू बालकोंके पालन-पोषण, शिक्षा आदिमें लगाया जा सकता है । जो हिन्दुओंके घरोंमें जन्म लेंगे, उनमें हिन्दूधर्मके संस्कार स्वाभाविक एवं स्थायीरूपसे पड़ेंगे । धर्मान्तरित लोगोंको वापिस हिन्दू बनाना अपने हाथकी बात भी नहीं है । जो अपने हाथकी बात नहीं है, उसके लिये उद्योग करना और जो (हिन्दुओंको जन्म देना) अपने हाथकी बात है, उसको रोकनेका उद्योग करना बुद्धिमानीका काम नहीं है ।

वास्तवमें परिवार-नियोजन-कार्यक्रमसे हिन्दुओंका जितना नुकसान हुआ है, उतना नुकसान मुसलमानों और ईसाइयोंने भी कभी नहीं किया और वे कर सकेंगे भी नहीं ! जितने हिन्दू धर्मान्तरित हुए हैं, उससे कई गुना अधिक हिन्दू जन्म लेनेसे रोके गये हैं । जनवरी ८, १९९१ में समाचार-पत्रोंमें छपा था कि देशमें परिवार-नियोजन-कार्यक्रमसे अबतक लगभग बारह करोड़ बच्चोंका जन्म रोका गया है । यह जानकारी तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्रीने राज्यसभामें दी थी । उस समय तो परिवार-नियोजन-कार्यक्रमोमे बहुत अधिक तेजी नहीं थी । उसके बादके वर्षोंमें इस कार्यक्रममें बहुत तेजी आयी है । एक बच्चेका भी जन्म रोकनेसे आगे उससे होनेवाली संतानोंका जन्म भी स्वतः रुक जाता है । अतः धर्मान्तरणके घाटेकी पूर्ति तो हो सकती है, पर परिवार-नियोजनके घाटेकी पूर्ति किसी प्रकार हो ही नहीं सकती, असम्भव ही है ।

धर्मान्तरित लोग तो वापिस हिन्दूधर्ममें आ सकते हैं, पर जिनका जन्म रोका गया है, वे वापिस हिन्दुओंके यहाँ जन्म न लेकर मुसलमानों और ईसाइयोंके यहाँ ही जन्मेंगे । कारण कि भगवान्‌ने कृपापूर्वक जिन जीवोंको अपना कल्याण करनेके लिये मनुष्य-शरीर दिया है, उनको हिन्दूलोग अपने यहाँ नहीं आने देंगे तो फिर वे मुसलमानों और ईसाइयोंके यहाँ ही जन्मेंगे । अगर हिन्दू उनके विशेष ऋणानुबन्धसे अपने यहाँ होनेवाले जन्मको रोकेंगे तो वे सामान्य ऋणानुबन्धसे विधर्मियोंके यहाँ जन्मेंगे । कारण कि हिन्दुओंका ज्यादा सम्बन्ध मुसलमानों और ईसाइयोंसे रहता है; उनकी बनायी वस्तुओंसे वे सुख-आराम लेते हैं; अतः उनके साथ ऋणानुबन्ध रहनेसे वहीं उनका जन्म होगा । तात्पर्य यह हुआ कि मनुष्य-शरीरमें आनेवाले जीवोंको अपने यहाँ आनेसे रोककर हिदूलोग मुसलमानों और ईसाइयोंकी संख्याको ही तीव्र गतिसे बढ़ा रहे हैं । इसलिये वास्तवमें परिवार-नियोजनके द्वारा हिदूलोग मूलरूपसे मुसलमानों और ईसाइयोंकी ही संख्या बढ़ानेका उद्योग कर रहे हैं । सन्तति-निरोध करके वे असली (जन्मसे ही) मुसलमान और ईसाई पैदा करनेमें सहायोग दे रहे हैं और नकली (धर्मान्तरण करके) मुसलमान और ईसाई बननेवालोंको रोकनेका प्रयास कर रहे हैं । कितने आश्चर्यकी बात है !
  
  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आवश्यक चेतावनी’ पुस्तकसे