।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल सप्तमी, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
बिन्दुमें सिन्धु


(गत ब्लॉगसे आगेका)

अपना सुख चाहनेवाला दुःखसे वंचित रह सकता ही नहीं । जो संसारका सुख चाहता है, उसको दुःख भोगना पड़ेगा ही, यह नियम है । इस बातका मेरेको खूब अनुभव है ! भाई हो, चाहे बहन हो, जो दुनियाका, भोगोंका सुख चाहता है, वह कभी सुखी नहीं हो सकता । यह मेरी खूब देखी हुई, आजमाइश की हुई, लोगोंपर देखी हुई बात है । इसपर मैंने खूब विचार किया है । रुपयोंसे सुविधा हो सकती है, पर सुख नहीं हो सकता । रुपयों जैसी निकम्मी चीज कोई नहीं है‒यह मेरा निर्णय है । रुपयोंसे खरीदी हुई चीज काम आती है, पर रुपया खुद कुछ काम नहीं आता । भोगोंसे सुख चाहनेवाला सांगोपांग दुःख पाता है । सुख देनेकी चीज है, लेनेकी नहीं ।

भगवान्‌के भजनमें लग जाओ तो उन्नति जरूर होगी-यह नियम है । आप भगवान्‌का नामजप करो, कीर्तन करो, भगवान्‌की बातें सुनो, भक्तोंके चरित्र पढ़ो, गीता-रामायण पढ़ो, विनयपत्रिका पढ़ो, आपको शान्ति जरूर मिलेगी । पहले गीता याद कर लो । फिर एकान्तमें बैठकर गीताका उल्टा पाठ करो‒यत्र योगेश्वरः कृष्णो.......’ से लेकर धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे.......’ तक उल्टा पाठ करो तो समाधि लग जायगी, आनन्द हो जायगा ! मैंने करके देखा है, आप भी करके देखो । आपको जरूर शान्ति मिलेगी । चलते-फिरते, उठते-बैठते हरदम भगवान्‌से कहो कि हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । आपको शान्ति मिलेगी ।

सत्संग सुननेसे अपने जीवनमें परिवर्तन होना चाहिये । अगर सत्संग सुनकर भी भोग और संग्रहमें ही लगे रहें तो सत्संग सुनने और न सुननेमें फर्क क्या हुआ ? अगर आपके जीवनमें, आपके विचारोंमें परिवर्तन नहीं हुआ तो आपने सत्संगसे क्या लाभ उठाया ? आप सत्संग अर्थात् सत्’ का संग करते हो तो आपको सत्‌की तरफ चलना चाहिये कि असत्‌की तरफ ? सत्‌की तरफ चलें तो सत्संगका उपयोग है । अगर सत्‌की तरफ न चलें तो सत्संगका क्या उपयोग हुआ ?


भोग भी असत् है और रुपया भी असत् है । परिवार-नियोजन केवल भोगके लिये है । आज मर जायँ तो भोगा हुआ भोग क्या काम आयेगा ? इकट्ठा किया हुआ रुपया क्या काम आयेगा ? आप खुद विचार करो । भोग और संग्रह तो सदा साथ रहेंगे नहीं, केवल भोगोंकी आसक्ति और रुपयोंका लोभ साथ रहेगा । आसक्ति और लोभ बढ़ाकर अपना अन्तःकरण अशुद्ध कर लिया, क्या यह सत्संगका उपयोग हुआ ? आपके विचार शुद्ध हो जाय, आपका विवेक जाग्रत् हो जाय, आप दुर्गुण-दुराचारसे हट जायँ तो आपका सत्संग सार्थक हो गया ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे