।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल सप्तमीवि.सं.२०७३शुक्रवार
बिन्दुमें सिन्धु


(गत ब्लॉगसे आगेका)

एक स्व’ है और एक पर’ है । प्रकृतिकी सम्पूर्ण वस्तुएँ पर’ हैं । पर’ अपना नहीं है, ‘स्व’ अपना है । आप पर’ की तरफ चलोगे तो स्व’ कैसे मिलेगा ? आप शरीर, इन्द्रिय, मन, बुद्धिसे अपना लाभ सोचते हैं, पर इनसे आपका लाभ नहीं होगा । आपका लाभ होगा भगवान्‌की तरफ चलनेसे । पर’ के द्वारा किसीका कल्याण हुआ नहीं, होगा नहीं, हो सकता नहीं । पर’ कोई कामकी चीज नहीं है । आपके शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धि न आपका भला करनेवाले हैं, न बुरा करनेवाले । ये आपसे तटस्थ रहते हैं । इनके द्वारा आपका भला नहीं होगा । इनमें फँसोगे तो पतन जरूर होगा । शरीरादि सब सामग्री केवल दूसरोंके हितके लिये है । मात्र क्रिया दूसरोंके हितके लिये है । कोई भी क्रिया आपके काम आनेवाली नहीं है ।

शरीर आपके कामका नहीं है । स्थूल, सूक्ष्म और कारण‒तीनों शरीर केवल दूसरोंकी सेवाके लिये हैं । जब सब चीजें दुनियाके हितके लिये हैं, आपके लिये हैं ही नहीं, तो फिर कामना कैसी ? कामनाके लिये अवसर ही नहीं है । चीजें संसारकी हैं, उनको संसारमें लगा देना है और जीव परमात्माका है, उसको परमात्मामें लगा देना है । न संसारकी कामना करनी है, न परमात्माकी कामना करनी है । यह सिद्धान्त है । आपका सम्बन्ध परमात्माके साथ है, जड़ चीजोंके साथ नहीं । जो चीज आपकी नहीं है, उसकी कामना करनेका आपको अधिकार ही नहीं है । संसारकी चीज संसारको और परमात्माकी चीज परमात्माको दे दो तो कामना करेगा कौन ? कामना करनेवाला रहेगा ही नहीं ! इस बातको न समझनेके कारण कामनाका त्याग बड़ा कठिन मालूम देता है ।

संसारकी सब चीजें मिली हैं और बिछुड़नेवाली हैं । मिलने और बिछुड़नेवाली चीज अपनी नहीं होती । यह बहुत दामी बात है ! परमात्मा अपने हैं । वे कभी हमसे बिछुड़ते ही नहीं । हम नरकोंमें जायँ, स्वर्गमें जायँ अथवा मृत्युलोकमें जायँ, कहीं भी जायँ, परमात्मा सदा हमारे साथमें रहते हैं । वे सम्पूर्ण प्राणियोंके हृदयमें सदा विराजमान रहते हैं‒‘ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति’ (गीता १८ । ६१) । इस बातकी तरफ आप ख्याल करो तो आपका जीवन सफल हो जायगा !


जीव भगवान्‌का अंश है; अतः वह किसी भी तरहसे भगवान्‌से सम्बन्ध जोड़ ले, उसका कल्याण ही होगा । भगवान्‌का सम्बन्ध कल्याण करनेवाला है । जिसने भगवान्‌से वैर किया, उसका (कंस, शिशुपाल आदिका) भी कल्याण हो गया और जिसने भगवान्‌से प्रेम किया, उसका भी कल्याण हो गया, पर जिसने भगवान्‌से कोई सम्बन्ध नहीं जोड़ा, उसका कल्याण नहीं हुआ । कोई कहता है कि भगवान् मेरे हैं’ तो भगवान्‌को बड़ा आनन्द आता है ! वास्तवमें भगवान्‌के सिवाय अपना कोई है ही नहीं । आप सांसारिक चीजोंमें लगकर भले ही भगवान्‌को भूल जाओ, पर भगवान् आपको कभी भूलते नहीं ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे