।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७३, रविवार
बिन्दुमें सिन्धु


(गत ब्लॉगसे आगेका)

जीव भगवान्‌का अंश है; अतः वह किसी भी तरहसे भगवान्‌से सम्बन्ध जोड़ ले, उसका कल्याण ही होगा । भगवान्‌का सम्बन्ध कल्याण करनेवाला है । जिसने भगवान्‌से वैर किया, उसका (कंस, शिशुपाल आदिका) भी कल्याण हो गया और जिसने भगवान्‌से प्रेम किया, उसका भी कल्याण हो गया, पर जिसने भगवान्‌से कोई सम्बन्ध नहीं जोड़ा, उसका कल्याण नहीं हुआ । कोई कहता है कि भगवान् मेरे हैं’ तो भगवान्‌को बड़ा आनन्द आता है ! वास्तवमें भगवान्‌के सिवाय अपना कोई है ही नहीं । आप सांसारिक चीजोंमें लगकर भले ही भगवान्‌को भूल जाओ, पर भगवान् आपको कभी भूलते नहीं ।

श्रोता‒भगवान्‌से सम्बन्ध जोड़नेके बाद क्या कामना रहते हुए भी भगवान्‌की प्राप्ति हो सकती है ?

स्वामीजी‒हाँ, कामना रहते हुए भी भगवान् मिल सकते हैं और भगवान्‌के मिलनेपर कामना नहीं रहेगी ।

श्रोता‒भगवान्‌के मिलनेमें कारण क्या है ?

स्वामीजी‒प्रेम अर्थात् भगवान्‌की तरफ खिंचाव ।

श्रोता‒कितना प्रेम होना चाहिये ?

स्वामीजी‒इतना प्रेम होना चाहिये कि अपनेमें कामना है कि नहीं है, यह याद ही न रहे । सब बातें भूलकर केवल भगवान्‌ ही याद आयें, केवल भगवान् ही मीठे लगें । भगवान् केवल प्रेमको ही देखते हैं, कामना आदिको देखते ही नहीं । भगवान्‌को प्रेमके सिवाय और कुछ दीखता ही नहीं ! जैसे पैसोंका लोभी आदमी कूड़े-कचरेमें, मैलेमें पड़े हुए पैसेको भी उठा लेता है, ऐसे ही भगवान् प्रेमके लोभी हैं !

श्रोता‒भगवान्‌की तरफ चलनेमें विघ्न आता है कि नहीं आता ?

स्वामीजी‒भगवान्‌की तरफ चलनेमें विघ्न नहीं आते । वास्तवमें हमारा मन ही विघ्न है, हमारी दूसरी इच्छाएँ ही विघ्न हैं । भगवान्‌की तरफसे कोई विघ्न नहीं आता । हम इच्छा करते हैं कि ऐसा हो जाय, यह मिल जाय, यही विघ्न है । भगवत्प्राप्तिके किसी भी मार्गपर चलो, संसारकी इच्छा ही बाधक होती है ।

ज्ञानमार्गवाला बड़े लड़केके समान है और भक्तिमार्गवाला छोटे बच्चेके समान है । माँकी दोनोंपर समान कृपा होती है, पर वह छोटे बच्चेकी ज्यादा निगाह रखती है, उसकी ज्यादा चिन्ता करती है । भक्तके हृदयमें भगवान्‌से मिलनेकी ज्यादा व्याकुलता रहती है । उस व्याकुलतामें आनन्द बहुत है । 

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे