।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल दशमी, वि.सं.२०७३, सोमवार
एकादशी-व्रत कल है
गीतामें भगवान्‌की उदारता


   उदारा   ये   सृष्टौ   सहितममतापाशनिहता
                          अतस्ते  संयाता  जनिमरणदुःखेषु  सततम् ।
 विना स्वार्थ कामं स्वसकलजनानां हितकरो
                          भवानेकः कृष्णास्त्रिभुवनयुदारो वरतमतः ॥

अर्जुनने भगवान्‌के ऐश्वर्य-(सशस्त्र एक अक्षौहिणी  नारायणी सेना-) को छोड़कर भगवान्‌को स्वीकार किया तो उनको भगवान् भी मिले और साथ-ही-साथ ऐश्वर्य भी मिला । भगवान्‌ने अर्जुनके लिये छोटेसे-छोटा काम किया अर्थात् पाण्डवोंकी सात अक्षौहिणी सेनामें भगवान् अर्जुनके सारथि बने (१ । २१) । यह भगवान्‌की कितनी उदारता है ! जो अनन्त सृष्टियोंको धारण करनेवाले हैं, सबका पालन-पोषण करनेवाले है, वे भक्तोंके लिये मनुष्यरूप धारण कर लेते हैं (४ । ६)‒यह उनकी कितनी उदारता है !

जो समताका जिज्ञासु है अर्थात् समता प्राप्त करना चाहता है, वह भी वेदोंमें कहे हुए सकाम अनुष्ठानोंका, बड़े-बड़े भोगों का अतिक्रमण कर जाता है (६ । ४४) । समतावाला योगी वेदोंमें, यज्ञोंमें,तपोंमें और दानमें जितने पुण्यफल कहे गये हैं, उन सबका अतिक्रमण कर जाता है (८ । २८) । समता-का उद्देश्य होनेमात्रसे भगवान् उसको कितना ऊँचा पद देते हैं ! भगवान्‌के विधानमें कितनी उदारता भरी हुई है !

वास्तवमें आर्त और अर्थार्थी भक्त उदार नहीं हैं; परन्तु भगवान्‌की यह विशेष उदारता है कि जो जिस-किसी भावसे भगवान्‌में लग जाता है, भगवान्‌के सम्मुख हो जाता है, उसको भगवान् उदार मानते है‒ ‘उदाराः सर्व एवैते’ (७ । १८)

प्रायः लोग दूसरोंकी श्रद्धा अपनेमें करानेके लिये कई तरहका नाटक करते हैं, दूसरोंको अपना ही दास, शिष्य बनानेके चक्करमें रहते हैं, पर भगवान्‌की यह विचित्र उदारता है कि जो अपनी कामना-पूर्तिके लिये जिस देवताकी श्रद्धापूर्वक उपासना करना चाहता है, भगवान् उसकी श्रद्धाको उसी देवताके प्रति दृढ़ कर देते है, और उसकी उपासनाका फल भी दे देते है (७ । २१‒२२) ।

अन्तसमयमें मनुष्य जिस-जिसका चिन्तन करता है, शरीर छोड़नेके बाद उस-उसको प्राप्त हो जाता है (८ । ६) । इस विधानमें भगवान्‌की कितनी उदारता भरी हुई है कि अन्तसमयमें जैसे हरिणका चिन्तन होनेसे भरतमुनिको हरिणकी योनि प्राप्त हो गयी, ऐसे ही भगवान्‌का चिन्तन होनेसे भगवान्‌की प्राप्ति हो जाती है । तात्पर्य है कि जिस अन्तिम चिन्तनसे हरिण आदि योनियोंकी प्राप्ति होती है, उसी चिन्तनसे भगवान्‌की प्राप्ति हो जाती है । भगवान्‌की इस उदारताका कोई पारावार नहीं है !

ब्रह्मलोकतक जितने भी लोक हैं, उनमें जानेपर फिर लौटकर आना पड़ता है, जन्म-मरणके चक्करमें जाना पड़ता है; परन्तु भगवान्‌की प्राप्ति होनेपर फिर लौटकर संसारमें नहीं आना पड़ता (८ । १६)‒यह भगवान्‌की कितनी महती उदारता है !

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे