।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल एकादशी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
जया एकादशी-व्रत
गीतामें भगवान्‌की उदारता


(गत ब्लॉगसे आगेका)

जो अनन्यभावसे भगवान्‌की उपासनामें लग जाते है, उनको भगवान् अप्राप्तकी प्राप्ति करा देते हैं (९ । २२) चाहे वह प्राप्ति लौकिक हो अथवा पारलौकिक । लौकिक प्राप्तिमें भगवान् उनके शरीर तथा कुटुम्ब-परिवारके निर्वाहका प्रबन्ध करा देते हैं, उनकी तथा उनके कुटुम्बकी रक्षा करते हैं । परन्तु इसमें एक विलक्षण बात है कि जिनकी प्राप्ति करा देनेसे उनका हित होता हो, वे संसारमें न फँसते हों, उन चीजोंकी प्राप्ति तो भगवान् करा देते है; पर जिनकी प्राप्ति करा देनेसे उनका हित न होता हो, वे संसारमें फँसते हों, उन चीजोंकी प्राप्ति भगवान् नहीं कराते । जैसे, नारदजीके मनमें विवाह करनेकी आयी तो भगवान्‌ने उनका विवाह नहीं होने दिया; क्योंकि इसमें उनका हित नहीं था । अगर लौकिक प्राप्ति करानेसे उनका पतन न होता हो तो उनकी लौकिक चाहना न होनेपर भी भगवान् लौकिक प्राप्ति करा देते हैं । जैसे, ध्रुवजीने पहले सकामभावसे भगवान्‌की उपासना की । उस उपासनासे उनके मनका सकामभाव मिट गया, तो भी भगवान्‌ने उनको छत्तीस हजार वर्षके लिये राज्य दे दिया तथा ध्रुवलोक बना दिया । तात्पर्य है कि उनको अलौकिक (पारलौकिक) चीज तो भगवान् देते ही हैं, पर लौकिक चीजसे उनका भला होता हो तो लौकिक चीजकी प्राप्ति भी भगवान् करा देते हैं ।

जो भक्त भक्तिभावसे पत्र, पुष्य, फल, जल आदिको भगवान्‌के अर्पण कर देता है, उसको भगवान् खा लेते है, यह विचार नहीं करते कि यह फल है या फूल अथवा पत्ता ! (९ । २६) । उदारभावके कारण भगवान् भक्तके भावमें कितने बह जाते हैं ! इतना ही नही, भक्तोंके भावमें बहकर भगवान् अपनी बिक्री भी कर देते हैं‒

तुलसीदलमात्रेण    जलस्य     चुलुकेन      वा ।
विक्रीणीते स्वमात्मानं भक्तेभ्यो भक्तवत्सलतः

यह भगवान्‌की उदारताकी हद हो गयी ! 

संसारके पद, अधिकार आदि सबको समानरूपसे नहीं मिलते, प्रत्युत योग्यता आदिके अनुसार ही मिलते हैं । परन्तु भगवान्‌ने अपनी प्राप्तिके लिये इतनी उदारता कर रखी है कि पापी-से-पापी, दुराचारी-से-दुराचारी मनुष्य भी भगवान्‌का भजन कर सकता है, भगवान्‌को अपना मान सकता है, भगवान्‌की तरफ चल सकता है, भगवान्‌को प्राप्त कर सकता है । (९ । ३०-३१) ।

जो केवल भगवान्‌के भजनमें ही मस्त रहते हैं, भगवान्‌की लीला आदिमें ही रमण करते हैं, उनकी कोई इच्छा न होनेपर भी भगवान् अपनी तरफसे उनको वह ज्ञान देते हैं, जो ज्ञान जिज्ञासुओंको भी बड़ी कठिनतासे मिलता है (१० । ११) । यह भगवान्‌की कितनी उदारता है !

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे