।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल द्वादशी, वि.सं.२०७३, बुधवार
गीतामें भगवान्‌की उदारता


(गत ब्लॉगसे आगेका)

गीतामें अर्जुन भगवान्‌से थोड़ी बात पूछते हैं, तो भगवान् उसका विस्तारसे उत्तर देते हैं अर्थात् अर्जुनके प्रश्नका उत्तर तो देते ही हैं, पर अपनी ओरसे और भी बातें बता देते हैं । अर्जुनने भगवान्‌से प्रार्थना की कि हे भगवन् ! मैं आपका अविनाशी रूप देखना चाहता हूँ (११ । ३), तो भगवान्‌ने देवरूप, उग्ररूप, अत्युग्ररूप आदि अनेक स्तरोंसे अपना अक्षय-अविनाशी विश्वरूप दिखा दिया । अगर अर्जुन भगवान्‌के विश्वरूपको देखकर भयभीत नहीं होते तो भगवान् न जाने अपने कितने रूप दिखाते चले जाते  ! यह भगवान्‌की कितनी उदारता है !

निर्गुण उपासना करनेवाले तो पराभक्तिसे भगवान्‌को तत्त्वसे जानकर भगवान्‌में प्रविष्ट होते हैं (१८ । ५५); परन्तु जो सगुण उपासना करनेवाले है, उन भक्तोंको भगवान् ज्ञान भी देते हैं, दर्शन भी देते हैं और अपनी प्राप्ति भी करा देते हैं (११ । ५४) । भगवान्‌में आविष्ट चित्तवाले भक्तोंका भगवान् स्वयं संसार-सागरसे शीघ्र उद्धार करनेवाले बन जाते हैं (१२ । ७) । यह भगवान्‌की भक्तोंके प्रति कितनी उदारता है !

जो अविनाशी शाश्वत पद लम्बे समयतक एकान्तमें रहकर धारणा-ध्यान-समाधि करनेसे प्राप्त होता है, वही पद भक्त सांसारिक सब काम करता हुआ भी भगवान्‌की कृपासे अनायास ही पा लेता है (१८ । ५१‒५६) । जो केवल भगवान्‌के शरण हो जाता है, उसको भगवान् सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त कर देते है, (१८ । ६६) । यह भगवान्‌की कितनी उदारता है !

जो भगवद्‌भक्तोंमें गीताका प्रचार करता है, वह भगवान्‌को ही प्राप्त होता है । उसके समान भगवान्‌को और कोई प्यारा नहीं है । अगर कोई प्रचार नहीं कर सकता, पर गीताका अध्ययन, पठन-पाठन करता है, उसके द्वारा भगवान् ज्ञानयज्ञसे पूजित होते हैं । जो गीताका अध्ययन भी नहीं कर सकता, केवल दोषदृष्टि-रहित होकर श्रद्धापूर्वक गीताका श्रवण करता है, वह भी शरीर छूटनेके बाद भगवद्धाममें चला जाता है (१८ । ६८‒७१) । भगवान्‌की इस उदारताको क्या कहा जाय ?

कोई भगवान्‌को माने चाहे न माने, भगवान्‌का मण्डन करे चाहे खण्डन करे, भगवान्‌का त्रिलोकीसे अस्तित्व ही उठा देना चाहे, तो भी भगवान्‌की बनायी हुई पृथ्वी सबको समानरूपसे आश्रय देती है । पृथ्वीपर सभी बैठते है, चलते है, टट्टी करते हैं, पेशाब करते हैं, लातों आदिसे मारते हैं, तो भी पृथ्वी उनकी गलतियोंकी तरफ ख्याल नहीं करती । भगवान्‌के बनाये हुए जलमें कोई स्नान करे, कपड़े धोए, आचमन करे अथवा कुल्ला करे, तो भी जल समानरीतिसे सबकी प्यास मिटाता है । भगवान्‌की बनायी हुई अग्नि सबको समानरीतिसे प्रकाश देती है, प्राणियोंके द्वारा खाये हुए चार प्रकारके अन्नको पचाती है, प्रकाश देकर सबका भय दूर करती है । भगवान्‌की बनायी हुई वायु सबको समानरूपसे श्वास लेने देती है, जीने देती है, सबको समानरीतिसे बल देती है । भगवान्‌का बनाया हुआ आकाश सबको समानरूपसे अवकाश देता है, दसों दिशाओंमें सबको समानरूपसे फलने-फूलने और बढ़नेके लिये अवकाश देता है । इस प्रकार जिसकी बनायी हुई चीजें भी इतनी उदार हैं, वह खुद कितना उदार होगा !

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे