।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.२०७३, गुरुवार
गीतामें भगवान्‌की उदारता


(गत ब्लॉगसे आगेका)

कोई अपने घरमें नगरपालिकाके जलकी टोंटी लगाता है तो उसका टैक्स देना पड़ता है, पर भगवान्‌ने कई नदियाँ बना दी हैं, जिनका कोई टैक्स नहीं देना पड़ता । ऐसे ही कोई अपने घरमें बिजलीका तार लेता है तो उसका टैक्स देना पड़ता है, पर भगवान्‌ने सूर्य, चन्द्र, अग्नि आदि बना दिये हैं, जिनका कोई टैक्स नहीं देना पड़ता । सभी मुफ्तमें प्रकाश पाते हैं । यह भगवान्‌की असीम उदारता नहीं तो और क्या है ?

 भगवान्‌ने मनुष्यको शरीरादि वस्तुएँ इतनी उदारतापूर्वक और इस ढंगसे दी हैं कि मनुष्यको ये वस्तुएं अपनी ही दीखने लगती है । इन वस्तुओंको अपनी ही मान लेना भगवान्‌की उदारताका दुरुपयोग करना है ।

भगवान्‌में यह बात है ही नहीं कि मनुष्य मेरेको माने, तभी उसका उद्धार होगा । यह भगवान्‌की बड़ी भारी उदारता है ! मनुष्य भगवान्‌को माने या न माने, इसमें भगवान्‌का कोई आग्रह नहीं है । परन्तु उसकी भगवान्‌के विधानका पालन जरूर करना चाहिये, इसमें भगवान्‌का आग्रह है; क्योंकि अगर वह भगवान्‌के विधानका पालन नही करेगा तो उसका पतन हो जायगा (३ । ३२) । अतः मनुष्य अगर विधाता (भगवान्) को न मानकर केवल विधानको माने तो भी उसका कल्याण हो जायगा । हाँ, अगर मनुष्य विधाताको मानकर उनके विधानको मानेगा तो भगवान्‌ उसे अपने-आपकों दे देंगे; परन्तु अगर वह विधाताको न मानकर उनके विधान को मानेगा तो भगवान् उसका उद्धार कर देंगे । तात्पर्य है कि विधाताको माननेवालेको प्रेमकी प्राप्ति और विधानको माननेवालेको मुक्तिकी प्राप्ति होती है ।

वास्तवमें देखा जाय तो विधानको मानना और विधाता (भगवान्) को न मानना कृतघ्नता है । कारण कि मनुष्य जो भी साधन करता है, उसकी सिद्धि भगवत्कृपासे ही होती है । वह जो भी साधन करता है, उसमें भगवान्‌का सम्बन्ध रहता ही है । संसार भगवान्‌का, जीव भगवान्‌का, शास्त्र भगवान्‌के, विधान भगवान्‌का‒सबमें भगवान्‌का ही सम्बन्ध रहता है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे