।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७३, बुधवार
परोपकारका सुगम उपाय



(गत ब्लॉगसे आगेका)

शास्त्रोंमें गीताकी बहुत महिमा बतायी गयी है । प्रायः ग्रन्थ बड़ा होता है और उसका माहात्म्य छोटा होता है । परंतु पद्मपुराणमें गीताका जो माहात्म्य आया है, उसमें अठारह अध्याय हैं और लगभग एक हजार एक सौ श्लोक हैं, जबकि गीताके अठारह अध्यायोंमें सात सौ ही श्लोक हैं ! गीतापर तरह-तरहकी प्रान्तीय भाषाओंमें तरह-तरहकी टीकाएँ हुई हैं और अब भी होती चली जा रही हैं । उन टीकाओंमें विचित्र-विचित्र भाव आये हैं । गीता और रामायणमें कितने-कितने भाव भरे पड़े हैं, इसका कोई अन्त नहीं है । इन दोनों ग्रन्थोंका प्रचार इनके अपने जोरसे हुआ है, राजसत्ता और पैसोंके जोरसे नहीं । ये दोनों प्रासादिक ग्रन्थ हैं और जो इनका आश्रय लेते हैं, उनपर ये कृपा करते हैं । इनका आश्रय लेनेसे मनमें विलक्षणता, विचित्रता आती है और ये ग्रन्थ समझमें आने लगते हैं । विद्याके जोरसे गीताका अर्थ नहीं समझ सकते । रामायणकी बड़ी सीधी-सरल चौपाइयाँ हैं, पर विद्याके जोरसे उनका गहरा अर्थ नहीं समझ सकते । परंतु भगवान्‌के शरण होनेपर साधारण आदमी भी इनका अर्थ जान सकता है ।

कलकत्तेकी एक बात है । हम आठ-दस व्यक्ति प्रतिदिन गीताकी चर्चा किया करते थे और परस्पर पूछा करते थे कि बताओ, यह कौन-से अध्यायका कौन-सा श्लोक है ? और चटाचट बताया करते थे । वहाँ एक व्यापारी सज्जन आये । उनको भी पूरी गीता याद थी, पर संख्यासहित याद नहीं थी । उनको बड़ा आश्चर्य होता था कि ये संख्यासहित श्लोक कैसे बता देते हैं ! उन्होंने मेरेसे पूछा कि गीताके श्लोकोंकी संख्या कैसे याद करूँ ? मैंने बताया कि आप बिना पुस्तक देखे ‘यत्र योगेश्वरः कृष्णो....’, ‘तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य...., और ‘राजन्संस्मृत्य संस्मृत्य.....’इस प्रकार गीताका उलटा पाठ करो और ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे.....’ तक आ जाओ । एकान्तमें बैठकर इस प्रकार उलटा पाठ किया जाय तो बड़ा विचित्र आनन्द आता है, समाधि-सी लग जाती है । उलटा पाठ करनेसे संख्याका खयाल रहता है, जिससे संख्या याद हो जाती है । उन्होंने ऐसा करना शुरू कर दिया । एक दिन आकर उन्होंने एकान्तमें मेरेसे कहा कि आज रात बहुत विलक्षण बात हुई । मेरे पूछनेपर उन्होंने गद्‌गद होकर बताया कि ‘मैं रातको लेटे-लेटे गीताका उलटा पाठ कर रहा था । तीसरे-चौथे अध्यायतक पहुँचा तो नींद आ गयी । नींदमें देखता हूँ कि भगवान् श्रीकृष्ण  छोटे बालकके रूपमें खेलते-खेलते आते हैं । उनके पीछे बड़ी अवस्थावाली तीन-चार गोपियाँ हैं । मैंने पूछा कि महाराज ! आपकी कितनी अवस्था है ? तो उन्होंने मुँहके पास आकर कहा कि सात वर्षकी । छोटे बालकसे कोई बात पूछो तो वह मुँहके पास आकर कहता है; क्योंकि वह समझता है कि आदमी मुँहसे बोलता है तो वह मुँहसे ही सुनता है । अतः बालरूप भगवान् श्रीकृष्णने मुँहके पास आकर ही कहा तो छातीपर उनका स्पर्श हुआ । वैसा स्पर्श मैंने संसारमें किसीका देखा नहीं । उस स्पर्शसे इतना आनन्द आया कि कह नहीं सकता । नींद खुल गयी और आँसू नेत्रोंसे निकलकर कानमें भर गये । यह गीता-पाठका ही प्रभाव था । गीता-पाठसे बड़ी विलक्षणता आती है, भगवान्‌की बड़ी कृपा प्राप्त होती है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सन्त-समागम’ पुस्तकसे