(गत ब्लॉगसे आगेका)
मृत्युकालकी सब सामग्री तैयार है । कफन भी तैयार है,
नया नहीं बनाना पड़ेगा । उठानेवाले आदमी भी तैयार हैं,
नये नहीं जन्मेंगे । जलानेकी जगह भी तैयार है,
नयी नहीं लेनी पड़ेगी । जलानेके लिये लकड़ी भी तैयार है,
नये वृक्ष नहीं लगाने पड़ेंगे । केवल श्वास बन्द होनेकी देर है
। श्वास बन्द होते ही यह सब सामग्री जुट जायगी । फिर निश्रिन्त कैसे बैठे हो ?
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चेत करो ! यह संसार सदा रहनेके लिये नहीं है । यहाँ केवल मरने-ही-मरनेवाले
रहते हैं । फिर पैर फैलाये कैसे बैठे हो ?
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विचार करो, क्या ये दिन सदा ऐसे ही रहेंगे ?
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मकान यहाँ बना रहे हो,
सजावट यहाँ कर रहे हो,
संग्रह यहाँ कर रहे हो,
पर खुद मौतकी तरफ भागे चले जा रहे हो ! जहाँ जाना है,
पहले उसको ठीक करो !
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निश्चित समयपर चलनेवाली गाड़ीके लिये भी जब पहलेसे सावधानी रहती
है, फिर जिस मौतरूपी गाड़ीका कोई समय निश्चित नहीं,
उसके लिये तो हरदम सावधानी रहनी चाहिये ।
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‘करेंगे’‒यह निश्चित नहीं है पर ‘मरेंगे’‒यह निश्चित है ।
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आप भगवान्को नहीं देखते,
पर भगवान् आपको निरन्तर देख रहे हैं ।
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आनेवाला जानेवाला होता है‒यह नियम है ।
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कालरूप अग्निमें सब कुछ निरन्तर जल रहा है फिर किसका
भरोसा करें ? किसकी इच्छा करें ?
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विचार करो कि अपना कौन है ?
अगर अभी मौत आ जाय तो कोई हमारी सहायता कर सकता है क्या ?
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(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘अमृतबिन्दु’ पुस्तकसे
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